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पुद्गल जड द्रव्य में परमाणु सूक्ष्मतम अन्तिम इकाई है ठीक उसी तरह काल द्रव्य में १ समय सूक्ष्मतम इकाई है । जैसे अत्यन्त सूक्ष्मतम परमाणु हमारे लिए बुद्धिगम्य-बुद्धिग्राह्य नहीं है ठीक उसी तरह काल द्रव्य की सूक्ष्मतम इकाई "समय" भी हमारे लिए बुद्धिगम्य या बद्धिग्राह्य नहीं है। एक बार की हमारी पलक झपकने में ही असंख्य समय बीत जाते हैं तो फिर १ समय की तो बात ही कहाँ रही? आँख की पलक झबकने की गणना करना यह हमारे जैसे मति-ज्ञानियों के लिए स्थूल काल की गणनारूप है । जबकि एक पलक झबकने के असंख्य समयों में से १ समय की गणना करना यह तो मात्र केवली गम्य एवं उनके लिए ही ग्राह्य है। अतः वे ही जान एवं देख सकते हैं कि...१ समय काल की कितनी सूक्ष्मतम अन्तिम इकाई है । और एक से दूसरे समय का विभाजन, भिन्नता केवली ही जान एवं देख सकते हैं। अन्य किसी के वश की बात ही नहीं है। अतः ये उन केवली सर्वज्ञ के ही वचन हैं कि... जिस समय कर्मरहित होकर आत्मा देह छोडती है, कर्म का संग (बंधन) छोडती है ठीक उसी समय–अर्थात् दूसरा समय न बदलते-न लेते हुए उसी समय में असंख्य योजनों का अन्तर काट कर लोकान्त प्रदेश में जाकर उसी समय सिद्धरूप में स्थिर हो जाती है। ओहो !.... कितना बडा आश्चर्यकारी कार्य है यह? कितनी द्रुत गति है यह जीव की? क्यों? कैसे? क्या कारणादि की रत्तीभर विचार करना हमारे वश की बात ही नहीं है । सर्वज्ञ वचन स्वीकार्य ही होता है । इस तरह गतिविषयक विचारणा की गई है । इसीलिए “जं जं जिणेहिं भासिआई तमेव निःसंकं सच्चं" अर्थात् जो...जो. .. जिनेश्वर-सर्वज्ञ भगवंतों ने फरमाया है वही शंकारहित सत्य है । बस, यह सर्वज्ञाश्रित श्रद्धा ही सम्यग् दर्शन है । सम्यक्त्व है । इसे ही पाना है । अतः पाने के लिए पुरुषार्थ प्रबल करना चाहिए। . १५ प्रकार से मोक्ष गमन
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आध्यात्मिक विकास यात्रा