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ही होता है उससे भी ऊपर का अग्र भाग ही लक्षित होता है। अतः समस्त चतुर्दश रज्जु परिमित लोक का ऊपरी अन्तवाला अग्र भाग ही मोक्ष का भौगोलिक स्थान है। यहाँ अन्त शब्द लोक के साथ जोडकर “लोकान्त" शब्द बनाकर जो दिया है वह और भी रहस्य खोलते हुए स्पष्ट करता है कि लोक के अन्त अर्थात् अन्तिम सीमा तक आत्मा पहुँचती है । अतः उसे ही लोकान्त
कहना उचित है। जैसे ही आत्मा ने देह छोडा वैसे ही सीधे ऊर्ध्व दिशा में ऊपर की तरफ सीधी जाती है। कोई भी उसका बाधक-अवरोधक बन ही नहीं सकता है। अतः अभेद्य रूप से सीधी ऊर्ध्व दिशा में जाकर लोकान्त में ही रुकती है । जहाँ सिद्धात्मा रुके वह लोकान्त है, या जहाँ लोकान्त है वहाँ आत्मा रुकती है। लोकान्ते सिद्धशिला“तदनन्तरमूर्ध्वं गच्छत्यालोकान्तात्”
“तदनन्तर" शब्द.. कर्मक्षय के अनन्तर अर्थात् बाद में ऐसा अर्थ स्पष्ट होता है । कर्मक्षय के पश्चात् ही आत्मा मुक्त होकर ऊपर जाती है। अतः तत्त्वार्थ के इस सूत्र में “ऊर्ध्व" शब्द स्पष्ट रूप से ऊर्ध्व लोक ऊपर की
दिशा का निर्देश करता है । अब ऊपर जाते हुए... कहाँ तक जाना उसके लिए आलोकान्तात "शब्द" है । अलोक नहीं परन्तु लोकान्त शब्द है । लोक के अन्तिम भाग तक । १४ राजलोक के लोक में नीचे से एक एक राज गिनने पर... अन्तिम चौदहवें राज में ऊपर सिद्धशिला आती है । जो उल्टी छत्री या छत्र को उल्टा रखो वैसी गोलाकार स्थिति में है। लेकिन एक तरफ की दिशा में कैसी दिखेगी? अष्टमी के चांद के जैसी दिखाई देती है । अतः चित्रांकन भी वैसा ही किया गया है।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा