________________
तरह आयुष्य काल व्यतीत करते हुए...अन्तिम अन्तर्मुहूर्त मात्र काल अवशिष्ट रहता है। तब योग निरोध करने की तैयारी करते हैं।
हम योगी बनने की कोशिश करते हैं। अपने मन-वचन-काया के योगों को साधकर अच्छे योगी बनने की कोशिश करते हैं। जबकि १३ वे गुणस्थान पर सयोगी महात्मा अब योगों का निरोध करके अयोगी बनने की तैयारी करते हैं । अतः योग की दृष्टि से १४ गुणस्थान का विभाजन इस तरह किया जा सकता है
बाद में योगाभावा
सयोगी १३ क्षीण मोह १२ ।
उपशान्त मोह ११
सू.संपराय १०
बाद में सयोगी ' बारहवे तक योगी
.
१ ले गुणस्थान से १२ गुणस्थान पर्यंत-तक के साधक अच्छे योगी महात्मा बनने की कोशिश करते हैं, बनते हैं। अपने योगों को साधते हैं । १३ वे गुणस्थान पर सयोगी योगसहित अपने योगज व्यापार भी सीमित करते हैं। तथा अन्त में मन-वचन-काया के तीनों योगों का निरोध करके अयोगी बनकर १४ वे गुणस्थान पर आते हैं । बस, फिर आगे तो सवाल ही नहीं रहता है । सिद्ध बन जाने के बाद मन-वचन-काया आदि सभी तीनों योगों का अनन्तकाल तक अभाव ही रहता है । अतः क्या बनना आसान है ? योगी बनना आसान है या सयोगी बनना आसान है या अयोगी बनना सरल लगता है ? अच्छे-सच्चे योगी बनना पहले अत्यन्त आवश्यक है । १३ वे गुणस्थान पर पहुँचकर सर्वज्ञ-वीतरागी बनकर सयोगी बनना आसान है ? फिर योगों को योगों की प्रवृत्तियों को रोककर अर्थात् योगों का निरोध करके अयोगी बना जाता है । बस, फिर मुक्तावस्था में अनन्त काल तक अयोगी ही रहना है ।
"सम्यग योगनिग्रहो गप्तिः” तत्त्वार्थसूत्र के इस सूत्र में महापुरुष ने मन-वचन-काया के इन तीनों योगों की प्रवृत्तियों को कैसे निर्दोष बनानी? मनादि तीनों योगों की चलती हुई विचारादि प्रवृत्तियों को भी आत्मा के लिए उपयोगी-सहयोगी कैसे
विकास का अन्त "सिद्धत्व को प्राप्ति"
१३४३