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काल, वचन, लिंगादि के विरोध रहित । २६) विभ्रमादि रहिता- विभ्रम-भ्रान्ति विक्षेपादि मानसिक दोष रहित। २७) चित्रकृतिकारक- निरंतर आश्चर्य उत्पन्न करनेवाली । २८) अद्धतत्व-अद्भुत अनोखी वाणी, २९) अनतिविलम्बिता-अत्यन्त विलंब-देरी रहित । ३०) अनेकजाति वैचित्र्य- वस्तुओं का अनेक तरीकों से वर्णन करनेवाली। ३१) आरोपित विशेषता- दूसरे वचनों की अपेक्षा सविशेषता दिखानेवाली। ३२) सत्त्वप्रधानता- सत्त्व-तत्त्ववाली। ३३) वर्ण-पद-वाक्यविविक्तता-वर्ण-पद-वाक्य के स्पष्ट विवेकवाली ।३४) अत्युच्छित्ति-कहे जानेवाले अर्थ की सिद्धि तक रहनेवाली । ३५) अखंडितत्व- बिना किसी थकान के अनायास रूप से उत्पन्न होनेवाली तीर्थंकर की वाणी होती है। ___ऐसे, ३५ विशेषण जो दिये गए हैं इन ३५ गुणों से सुशोभित वाणी तीर्थंकर भगवन्तों की होती है । इतनी सुंदर वाणी... को श्रवण करनेवाले बारह पर्षदा के श्रोता गण... सभी मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं । तल्लीनता से श्रवण करते हैं । प्रसन्न संतुष्ट हो जाते हैं । तृप्त होकर कृतकृत्यता-धन्यता का अनुभव करते हैं । चक्रवर्ती का पक्वान्न-मिष्टान्न का भोजन करके जितना संतोष नहीं होता होगा, शायद उससे भी लाख गुना ज्यादा संतोष और अत्यन्त आल्हादकारी आनन्द ऐसी तीर्थंकरों की वाणी का श्रवण करने से होता है । संशयों का छेदन हो जाता है । तत्त्वों का बोध होता है । चित्त को आनन्द-संतोष होता है । तृप्तता की अनुभूति होती है। यह परमात्मा के वचनातिशय के कारण प्रगट होती है। ऐसी ३५ गुणों से सुशोभित वाणी अन्य किसी की मिलनी संभव नहीं लगती। परम सौभाग्य से ऐसे तीर्थंकर परमात्मा की वाणी तथा समवसरण में बैठने का परम सौभाग्य प्राप्त होता है । अन्यथा सम्भव ही नहीं है। १२ गुण
इस तरह सहजातिशय, मूलातिशय, देवकृत अतिशय, कर्मक्षयकृत अतिशयादि से सुशोभित तीर्थंकर परमात्मा १३ वे गुणस्थान पर अरिहंत के रूप में सुशोभित होते हैं। वे १२ गुण सम्पन्न होते हैं।
आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना
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