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स्वभाव बडा ही खतरनाक था। शासन की अपभ्राजना न हो इसके लिए बचकर भाग निकलने का मार्ग अपवाद के रूप में रात्रि में भी सेवन कर रहे थे। अचानक शिष्य का पैर खड्डे में गिरा । शायद कांटा भी लगा हो । क्योंकि जंगलों के मार्ग कांटे कंकड से ही भरे होते हैं। तीव्र क्रोध की आग में भभुकते हुए गुरु ने एक डंडा जोर का शिष्य के सिर पर मारा । एक तरफ तो नया केशलुंचन हुआ हुआ था। सूजन भी काफी थी । डंडे की चोट से खून की धारा बहने लगी। फिर भी समता के सागर शिष्य ने बडे मीठे स्वर में नम्रता से कहा- गुरुदेव ! अब सीधा चलूंगा। गुरु को संभालने की भावना, सेवा भक्ति
और वैयावच्च की वृत्ति में नम्रता के उत्कृष्ट विनयभाव में शिष्य ने भावनाओं को भावों के बल पर बढाया। अध्यवसाय की धारा शुद्ध-विशुद्ध बनती ही गई । काया से चलते हुए भी मन ध्यान में तल्लीन बन गया । ध्यान शुक्ल की कक्षा में आगे बढा । चिन्तन शुभ करके अपनी आत्मा को समझा रहे थे- हे चेतन ! तुने पशु के भव में मालिक की कितनी चाबूकें खाई हैं? कितनी मार खाई ? अरे ! नरक गति के जन्मों में परमाधामियों के हाथ के तीर-भाले कितने खाए ? तो आज इसमें क्या बडी बात है ? यह तो गुरु के हाथ की मार है। वाह ! इस मार में तो आशीर्वाद बहुत ऊँचे हैं। आर्तध्यान के अवसर को मुनि ने शुक्लध्यान में बदल दिया । क्षपक श्रेणी शुरु हो गई। और देखते ही देखते केवलज्ञान प्राप्त हो गया।
__ आह ! क्या आश्चर्य? वर्षों के दीर्घ संयमी आचार्य क्रोध में ही रह गए और शादी के लिए आया युवक साधु बनकर एक ही रात में केवलज्ञानी बन गया ! इसमें तो हमारी बुद्धि सोच-सोचकर थक जाय तो भी कुछ भी समझ में नहीं आ सकता कि यह क्या हो रहा है? कैसे हो रहा है? ऐसे कथानक से लगता है कि...कितनी आसान क्रिया होगी केवलज्ञान पाने की?
... इधर गुरु ने अभिमान से पूछा क्यों रे चेला? अब तो बराबर चलता है न? डंडा पडे तो ही सीधा होता है, और सीधा चलता है । क्यों? शिष्य ने कहा- गुरुजी आपका असीम उपकार है । आहा ! कितना विनीत जीव है ? गुरु ने कहा- अब तो सीधा चलेगा न? शिष्य- गुरुजी ! आपकी असीम कृपा से अब तो सब साफ स्पष्ट दिखाई देता है । गुरु ने आश्चर्य से पूछा ... अरे ! इतने अन्धेरे में भी साफ कैसे दिखाई देता है ? अभी कहाँ दिन उदय हुआ है ? अरे ! कैसे दिखाई देता है ? शिष्य ने कहा- गुरुजी ! अब तो आँखें बंद कर के चलूँ तो भी दिखता है और खुल्ली रखू तो भी दिखता है । इस जवाब से गुरु विस्मय में पडकर गहरा सोचने लगे। अरे ! आँख बन्द करने पर यदि दिखाई दे
आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना
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