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युद्ध के मैदान में केवलज्ञान
इतिहास प्रसिद्ध भरत- - बाहुबली की बात को कौन नहीं जानता ? प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ के ज्येष्ठ पुत्र... भरतजी और बाहुबली परस्पर दोनों सगे भाई हैं । अपने ही ९८ भाईयों तथा पिता ने इस असार संसार का त्याग करके दीक्षा ले ली । और ये दोनों भाई एक जमीन के टुकडे-राज्य के लिए झगडने लगे । अरे ! आश्चर्य तो इस बात का था कि भगवान तीर्थंकर के पुत्र, उसमें भी परस्पर भाई और सबसे विशेषता तो इस विषय की थी कि तद्भव मुक्तिगामी जीव हैं दोनों ही । फिर भी इतना भयंकर युद्ध खेलने लगे ? अरे ! यह युद्ध क्या था ? हजारों लाखों जवानों की जान के साथ मौत की खिलवाड । बस, सिर कटे और खून की नदी बहे ! ऐसे में इन्द्र ने बीच में पडकर समझौता कराके इन दो भरत और बाहुबली के बीच में ही ५ प्रकार के युद्ध करने का तय कराया । शेष समस्त सेना के प्राण बचा लिये। अब दोनों के बीच दृष्टि युद्ध, वाक्युद्ध आदि चले । परन्तु चारों में भरतजी हार गए । अन्त में मुष्टियुद्ध की बारी आई । चक्रवर्ती बननेवाले भरतजी ने मुष्टीप्रहार कर दिया। अब बाहुबली दूसरे भाई की बारी आई। एक बार तीव्र आवेश में उन्होंने भी मुट्ठी उठा तो ली... सामने धुसकर मारने ही जा रहे थे कि... बिजली के वेग की तरह विचार आ गया । अरे ... ! एक राज्य के लिए क्या लडना ? आज अनर्थ हो जाएगा। भाई के हाथों भाई की मौत ? नहीं ... नहीं ...
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आखिर वीर पुरुष थे ही... उठाई हुई मुट्ठी का वार खाली न जाय... अतः बाहुबली ने अपने ही सिर पर लाई और सिर के बाल पकडकर खींच लिये । बस, दूसरे पर उतारने का क्रोध जब इन्सान अपने ही ऊपर उतार लेता है तब ... . अपना ही भला होता है । क्षणभर में वीर पुरुष ने ... केशलूंचन करके भाव से ही दीक्षा ग्रहण करके.... . और "अप्पाणं वोसिरामि" करके कायोत्सर्ग ध्यान में खडे हो गए। आप सोच सकेंगे ? कहाँ तक खडे रहे ? .... ओहो... पूरे १२ मास । इतनी कठोर कायोत्सर्ग की ध्यान साधना ? आहार- पानी का तो नाम ही नहीं । इतना ऊँचा ध्यान होते हुए भी पैर में काँच के कण की तरह मन में भगवान के पास जाने में अपने छोटे भाइयों को वंदन करना पडेगा, यह विचार खटक रहा था ।
सर्वज्ञ प्रभु आदिनाथ ने साधना का रास्ता निष्कंटक करने के लिए.... बीच में से रोडे हटाने के लिए ... ब्राह्मी. सुंदरी साध्वियों को भेजा । बहन साध्वियाँ आई । ज्यादा नहीं बस, समझदार को मात्र इशारा ही किया ।... वीरा ! मारा गज थकी उतरो
आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना
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