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... गज चढे केवल न होय रे !... हे बंधु ! हाथी पर से नीचे उतरो... हाथी पर चढे हुए केवलज्ञान नहीं होता है । इन शब्दों में केवलज्ञान का संकेत था। ध्यानस्थ बाहुबली ये शब्द सुनकर चिन्तन की गहराई में उतर गए। और सारा तत्त्व समुद्र खोज डाला। अरे ! यह हाथी कौन सा ? मैं तो साधु-त्यागी हूँ... मैं कहाँ किस हाथी पर बैठा हूँ ? अरे ! यह क्या बात है ? और वह भी मेरी बहनों ने कही? क्या साध्वी बनी हुई पंचमहाव्रत धारी मेरी बहनें असत्य कहेंगी? अरे ! नहीं...कभी नहीं.. । बस, इस आंतरिक उहापोह .... में रहस्य मिल गया....ओहो... हो...। मैं तो अहंकार रूपी गजराज पर बैठा हूँ ...कि प्रभु के चरणों में जाऊँ । लेकिन छोटे भाइयों को वंदन न करूँ । अरे..रे ! ये भाई उम्र में छोटे होते हुए भी मेरे से पहले दीक्षित बने हुए तपस्वी मुनि हैं.... चलो, मैं अभी जाता हूँ और पहले वंदन करता हूँ । वाह ! कितने ज्ञानी.... अपना शल्य स्वयं ही खोज निकाला और तुरंत उपाय का अमल । बस, आ गए आत्मगुण की रमणता में... ध्यान की धारा शुरु हो गई... और पैर उठाया वन्दन करने जाने के लिए। और क्षपक श्रेणी में सीधे ही केवलज्ञान प्राप्त हो गया। वाह ... वाह... कितनी बडी गजब की बात ... क्षणभर में पैर उठाते ही केवलज्ञान।...ओ हो.... हो । बस, पहुँचे महात्मा १३ वे गुणस्थान पर । फिर तो १४ वे गुणस्थान के बाद सीधे मोक्ष में पधारे ।
वियोग के विलाप में भी केवलज्ञान
वाह ! केवलज्ञान पाने का यह भी एक कितना गजब का निमित्त है ? ३० वर्ष तक निरन्तर भगवान महावीर के चरणों में रहनेवाले आद्य गणधर गौतमस्वामी जैसे गुरु महाराज को अपनी जीवनलीला समाप्त करने के अगले दिन शाम को विदाय कर दिया। भेज दिया देवशर्मा को प्रतिबोध करने के लिए। ३० वर्ष में श्री वीर प्रभु की छाया से भी अलग नहीं हुए गौतम आज वीर प्रभु को छोडकर एकाएक चले गए। उन्हें सदा के लिए यह वियोग होगा ऐसी कल्पना भी नहीं थी। वे तो प्रभु की आज्ञा प्राप्त करने के लिये ही सदा लालायित रहते थे। प्रभु की आज्ञा प्राप्त होने को वे सदा अपना सौभाग्य मानते थे, महान पुण्योदय उसे ही मानते । आज्ञा का पालन करने में ही प्रभु पूजा मानते थे। बस, दूसरा कुछ भी विचार न करते हुए... प्रभु की आज्ञा मिली है जाने की। इसमें ... परम आनन्द मानकर गौतम चले गए...और ऐसे लब्धिनिधान को किसी जीव को तारने में क्या समय लगता है। कार्तिक (आसो) कृष्ण की १४ की शाम को गए। और श्री वीर प्रभु ने दूसरे दिन कार्तिकी अमावास्या की रात्री के अंतिम प्रहर में अपना आयुष्य पूर्ण कर
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आध्यात्मिक विकास यात्रा