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ये तो केवलज्ञानी है। मैंने सर्वज्ञ की आशातना की। अतः वे भी पश्चाताप की धारा में झुलसने लगी। और कर्मक्षय करने के लिए... ध्यान की धारा में आरूढ हो गई। ज्ञानी-ध्यानी के ध्यान करना भी आसान खेल होता है। बस, फिर पूछना ही क्या? क्षपकश्रेणी पर चढते ही आगे के गुणस्थानों पर पहुँचते ही चन्दनाजी भी केवली बन गई। वाह ! जैन शासन में कैसे-कैसे सुंदर दृष्टान्त बने हैं। साध्वीजी कक्षा में भी दोनों केवलज्ञानी बनकर मोक्ष में सदा के लिए पधारे।
गुरु शिष्य को भी खमाने में केवलज्ञान
अत्यन्त ज्यादा क्रोधी स्वभाव के कारण आचार्य बने हुए चंडरुद्राचार्यजी के पास से सभी शिष्य चले गए । कोई साथ नहीं रहा, वे अकेले उद्यान में किसी वृक्ष के नीचे बैठे थे। वृद्धावस्था थी। दिखने में भी कम दिखता था। कुछ युवक शाम के समय आए। शादी जिसकी हो रही है, आज रात होनेवाली है, अतः बारात में सबके साथ आए हुए वरराजा युवक को लेकर कुछ मित्र चंडरुद्राचार्य जी के पास आकर हँसी विनोद में कहने लगे महाराज ! इसको दीक्षा दे दो । साधु बना दो। अभी थोडे घंटों में जिसका हस्तमिलाप होनेवाला है उस युवक को पकड कर मित्र वर्ग ले आए गुरु के पास और कहा महाराज ! बनाओ इसको महाराज । गुरु भी स्वभाव के बडे तेज थे। पास में पडी हुई कफ थूकने की राख ली और फटाफट उसके सिर पर से बाल खींचने लगे। आज की मजाक सबको भारी पड गई। गुरु ने बरोबर सिर मजबूत पकड कर रखा। और थोडी देर में तो पूरा केशलूंचन करके सिर साफ कर दिया। अब वह शादी करने क्या भागे? गुरु ने वहीं दीक्षा दे दी। ___इस तरफ सूर्यास्त होने आया रात का अन्धेरा छा जाएगा। अतः समझदार नूतन बने हुए मुनि ने कहा, गुरुजी ! चलो अब भाग चलें यहाँ से । अन्यथा सभी बाराती लोग आ जाएंगे तो विवाद खडा होगा। हो सकता है, शायद मार पीट भी हो सके । गुरु भी सारा रहस्य समझ गए। अच्छा चलो, लेकिन मैं तो उम्रलायक वृद्ध हूँ। मुझे कम दिखाई देता है । कैसे भागेंगे? शिष्य ने कहा- गुरुजी, मेरे कंधे पर बैठ जाइए, और निकल जाएंगे । चलो, आखिर शिष्य ने गुरु को कंधे पर बैठाया और रात के अंधेरे में विहार कर गए । रात्रि के अन्धेरे में साफ दिखाई भी न दे। एक तरफ बिना अनुभववाले नए शिष्य थे। गुरु भी उसके ऊपर है । इधर रास्ता भी सही नहीं । पैर टेढा-मेढा भी गिरता है और गुरु गिरने जैसे हो जाते हैं । अतः गुरु क्रोध में चिल्लाते हैं- ऐ? सीधा चल । क्रोध का
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आध्यात्मिक विकास यात्रा