________________
सोचने का समय माँगा। सामने बगीचे में वृक्ष के नीचे बैठकर सोचने लगा कि कितना माँ ? २ तोला, ४ तोला, अरे १०० तोला, या हजार या लाख या करोड? कितना सोना मांगूं ? ... बस, मन ने पल्टी मारी और अपने भूतकाल को देखने लगा। मैं क्या था? कौन था? कैसा था? और आज यह क्या? चिन्ता से चिम्तन की गहराई में चढ गया. .. इतने में ध्यान की धारा लग गई... बस, क्षपक श्रेणी शुरू हो गई। चारों घाती कर्मों के बंधन तूट गए और १३ वे गुणस्थान पर पहुँच कर केवलज्ञान पाकर केवली सर्वज्ञ बन गए। ___सुकोमल गजसुकुमाल- द्वारकाधीश की महारानी देवकी के अत्यन्त सुकोमल बालक गजसुकुमाल कुमार थे। भगवान नेमिनाथ की देशना सुनकर विरक्त मनवाले संसार छोडकर दीक्षा लेकर जैन साधु बनते हैं। प्रभु का आदेश लेकर श्मशान में कायोत्सर्ग साधना करने जाते हैं । वहाँ उसके श्वसुर सोमिल क्रोधित होकर आता है और क्रोधाभिभूत बनकर कायोत्सर्गध्यान में स्थित मुनि गजसुकुमाल के सिर पर मिट्टी की पाली बनाकर जलते अंगारे भरता है । आग से जलकर खोपडी फट रही थी। शरीर सुकोमल था लेकिन मन सुमेरु पर्वत जैसा मजबूत था, अतः उपसर्ग में भी ध्यान की धारा में चढ गए । धर्मध्यान से शुक्लध्यान में तेज रफ्तार से आगे बढते गए और ८ वे गुणस्थान पर क्षपक श्रेणी शुरू करके ८, १० वे से १२ वे होकर वीतरागी बनकर १३ वे गुणस्थान पर आए, एक तरफ जलते अंगारों से खोपडी फट रही है और दूसरी तरफ केवलज्ञान पाकर मोक्ष में गए। कोई सोचे तो दिमाग काम न करे ऐसी बात है। संभव ही न लगे, फिर भी संभव बनता
है।
12
नाम स इस
भरत चक्रवर्ती
प्रथम तीर्थपति भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र भरत चक्रवर्ती थे। जिनके नाम से इस देश का नाम भारत पडा । वे भरतजी ६ खंड के मालिक महान चक्रवर्ती थे। अपने भाई बाहुबली के साथ बडा भारी युद्ध किया। आखिर बाहबलीजी ने तो युद्धमैदान में ही दीक्षा ग्रहण कर ली। अपने ९९ भाईयों ने दीक्षा ली थी, अतः चक्रवर्ती भरत अपनी आत्मा के लिए भी सोचते
१२७२
आध्यात्मिक विकास यात्रा