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इधर परस्त्री लंपट राजा भी नाचनेवाली नर्तकी के रूपादि पर मोहित हो चुका था। अतः ईनाम देने की बात ही कहाँ रहती है? मन के विचार विकारग्रस्त हो गए। वह ऐसा सोचने लगा कि यह इलाचीकुमार गिर जाय, अपना संतुलन खो बैठे और गिरकर मर जाय तो इस सुंदरी के साथ मैं ही शादी कर लूँ । दानत खराब होने के इरादों से अब व्यक्ति का उल्टा चलना स्वाभाविक है। आखिरी बार अपनी जान की बाजी लगाकर इलाचीकुमार पुनः अपनी कला दिखाने चढा । क्या एक पैर पर रस्सी पर नाच रहा है । सारी सभा के हजारों बैठे हुए दर्शकों ने दांतों तले अंगुली दबा दी। लेकिन राजा टस से मस नहीं हुआ।
इधर बांस पर चढे नृत्य करते नृत्यकार की नजर किसी के घर में गई । खिडकी से देख रहा है कि... एक सुंदर स्वर्ग की अप्सरातुल्य स्त्री भिक्षा के लिए पधारे मुनि महात्मा को आहार दान करते हुए मोदक वहोरा रही है । फिर त्यागी तपस्वी मुनि लेने से इन्कार करते हैं और नजर ऊँची करके उस स्त्री के सामने भी नहीं देखते हैं । एकान्त है, अकेलापन है। स्वर्ग से सुन्दर अप्सरा जैसी यौवनवती रूपवती स्त्री है । मोदक जैसा गरिष्ट आहार है। फिर भी त्यागी मुनि आँख ऊँची करने के लिए तैयार भी नहीं है। और इधर कामी राजा इतनी रानियाँ होने के बावजूद उस नर्तकी पर से नजर हटाने के लिए भी तैयार नहीं है। धिक्कार है इस काम को । त्याग मार्ग एवं साधु महात्मा ही श्रेयस्कर हैं। बस, विचारधारा पलटते ही नाचती काया को भूलकर इलाचीकुमार चिंता में से मन हटाकर चिंतन की धारा में लगाता है । वर्षों से बांस पर नृत्य करने में जितना आनन्द आज दिन तक जो नहीं आया था वह आज आया। चिन्तन के तत्त्व-आत्मा-परमात्मा मोक्षादि हैं। बस, इनमें ध्यान को स्थिर करता है । और धर्मध्यान से शुक्लध्यान में पहुँचे । क्षपक श्रेणी आरंभ की । नृत्य की भाव भंगिमा और अंगमरोड की तरह गुणस्थान के सोपान बदलते गए। और देखते-देखते इलाचीकुमार के चारों घाती कर्मों का क्षय हो गया और १३ वे गुणस्थान पर पहुँचते ही केवलज्ञान पा गया। मोक्ष की दिशा पकड ली। देवताओं ने आकर स्वर्णकमल की रचना की । अब केवलज्ञानी मुनि ने सबको देशना दी । केवली की देशना में क्या कमी रहती है। पूर्व भवों का वर्णन भी सुंदर किया। काफी प्रतिबुद्ध
हुए।
देखिए, कैसी स्थिति थी इलाचीकुमार की? कहाँ ऊँचे श्रीमन्त राजघराने का राजकुमार, एक का एक इकलौता बेटा और कहाँ रास्तों पर नाचनेवाली नर्तकी ? मोहित होकर उसकी प्राप्ति के लिए नाचना...फिर भी ऐसी नर्तन की स्थिति में केवलज्ञान की प्राप्ति होनी कितनी असंभव सी बात को संभव कर केवलज्ञान पाकर मोक्ष में जाना कोई
आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना
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