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३) तीर्थंकर के शरीर में जो खन-मांस होता है वह भी बिल्कुल लाल न होकर सफेद रंग का होता है। वैसे सर्वसामान्य जीवों के शरीर में रक्त-मांस लाल होता है। लेकिन यह एक मात्र तीर्थंकरों का ही अतिशय होता है कि उनके शरीर में खून मांसादि दूध के जैसे सफेद रंग के होते है । याद रखिए कि दूध नहीं होता है । यहाँ सफेदी की उपमा दूध के साथ दी गई है । यह तुलना मात्र है । वह भी मात्र वर्ण (रंग) की है । न की ... द्रव्य की । इसलिए इतना भी न समझनेवाले कुछ बुद्धिहीन लोग दूध कहते हैं । यह उनकी बुद्धिहीनता का परिचय है । ठीक है, रक्त-मांस होता ही है, सिर्फ उनका रंग सफेद होता है । एक माता के स्तनों में पुत्रस्नेह पुत्रप्रेम अतिशय वात्सल्य के कारण दूध बनता है, आता है । रक्त में से इतना ही अंश बनता है । लेकिन तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन करते समय समस्त जीवराशी पर अपार वात्सल्य भाव प्रगट करके विश्वमातृत्व जैसा भाव लाकर चरम भव में आनेवाले भगवान के शरीर में रक्त-मांस सर्वथा श्वेतवर्ण का हो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है । यह अतिशय है। ___४) चौथा अतिशय ऐसा है कि... प्रभु के आहार तथा निहार (मल-मूत्र विसर्जन) की क्रिया सर्वसामान्य लोगों को दृष्टिगोचर नहीं होती है । हम लोग सभी चर्मचक्षुवाले होते हैं । अतः दिखाई नहीं देती है।
उपरोक्त चारों अतिशय जन्म से ही साथ होते हैं । अतः इन्हें सहजातिशय कहते हैं। मूलातिशय कहते हैं । इन को देवकृत विभाग में नहीं गिने हैं। दूसरे ४ अतिशय
१) ज्ञानातिशय २) वचनातिशय ३) अपायापगमातिशय ४) पूजातिशय
दूसरे विभाग में ये ४ अतिशय बताए हैं। ये जन्मतः सभी नहीं होते हैं । परन्तु केवलज्ञान की प्राप्ति के बाद पूर्णरूप से प्रगट होते हैं। सर्वसामान्य जीवों की अपेक्षा विशिष्ट अतिशय स्वरूप में जो प्राप्त हो उसे अतिशय कहते हैं।
१) ज्ञानातिशय- अतिशय स्वरूप में जो ज्ञान होता है उसे ज्ञानातिशय कहते हैं। भगवान में मति, श्रुत और अवधिज्ञान ये ३ ज्ञान जन्मजात साथ ही होते हैं । दीक्षा ग्रहण करते ही चौथा मनःपर्यवज्ञान प्रगट होता है । तथा सर्वथा संपूर्ण ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से केवलज्ञान प्रगट होता है। केवलज्ञान यह अतिशय ज्ञान है। इसमें कमी-न्यूनाधिकता अंशमात्र भी नहीं रहती है । ऐसा यह अतिशय ज्ञान १३ वे गुणस्थान पर आरूढ सर्वज्ञ में ही संभव होता है।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा