________________
बंध में से कम होती है । अतः १३८-३५ = १०३ कर्म प्रकृतियाँ ही नौंवे गुणस्थान के अन्त में सत्ता में रहती है। ___ दसवे गुणन सूक्ष्म लोभ के गुणस्थान पर आकर सूक्ष्म लोभ का भी क्षय कर लेता है । अतः १०३-१ = १०२ प्रकृतियाँ ही सत्ता में शेष रहती हैं।
वैसे देखा जाय तो १० वे गुणस्थान तक ही मोहनीय कर्म की प्रकृतियाँ क्षय करने का कार्य रहता है। अब तो मोहनीय कर्म की कोई प्रकृति खपाने की शेष रहती ही नहीं है। दूसरी तरफ न तो सत्ता में और न ही उदय में रहती है । किसको ?१२ वे गुणस्थानवाले क्षीण मोहवाले को । १० वे गुणस्थान से सीधे क्षपक श्रेणीवाला साधक १२ वे गुणस्थान पर ही जाता है । उसको ११ वे गुणस्थान पर तो जाना ही नहीं है । क्योंकि ११ वाँ गुणस्थान तो उपशान्त मोह का उपशम श्रेणीवाले का है । उसीका ही घर है । अतः क्षपक श्रेणीवाला साधक तो एक छलांग लगाकर सीधा १२ वे गुणस्थान पर जाता है । १२ वे गुणस्थान पर क्षीण मोह हो जाने के कारण अब मोहनीय की एक भी प्रकृति शेष बची ही नहीं है। अतः अब किसका क्षय करें? १२ वे गुणस्थान पर आखिर करे तो भी क्या.करें? नामकरण और कार्य
१२ वे गुणस्थान का मुख्य नाम “क्षीणमोह” है । कोई क्षीण कषाय वीतराग़ भी कहते हैं । वीतराग छद्मस्थ भी कहते हैं । क्षीण मोह इन दो शब्दों से अर्थ स्पष्ट हो जाता है। क्षीण = नाश और मोह शब्द कर्म का सूचक नामविशेष है । मोहनीय कर्म का जडमूल से सर्वथा संपूर्ण क्षय अर्थात् नाश हो चुका है जिसका ऐसा क्षीणमोही योगी। अनादि अनन्तकाल से जो मोहनीय कर्म कर्मों का राजा बना हुआ आत्मा को चारों गति में दुःखी-दुःखी कर रहा था। अनन्त संसार में अनन्त काल तक परेशान-परिभ्रमण कराया उस मोहनीय कर्म का आज जडमूल से सफाया कर दिया। अतः आप ही सोचिए... कितना आनन्द हुआ होगा साधक को? ८ कर्मों की जाल में बंधा हुआ जीव जिसने अनन्त काल तक कर्मों की गुलामी में, जंजीरों में, बंधे हुए के समान कितनी असह्य वेदना भोगी है? आज ८ में से सिर्फ १ मोहनीय कर्म को जडमूल से खपाने के पश्चात् अब १ कर्म के बंधन में से भी जो मुक्ति मिली है वह भी कितनी आनन्ददायी है? देखिए, कर्म भले ही ८ हो लेकिन मोहनीय कर्म यह सबसे बडा मुख्य राजा है । अन्य शेष कर्म इसके आधीन हैं। पीछे हैं । यह मुख्य कर्म है । बस, इस एक को जीत लेने के बाद दूसरों को जीतना बिल्कुल आसान है। दूसरी तरफ साधक योगी भी क्षपक श्रेणी का साधक है । और उसके
११९०
आध्यात्मिक विकास यात्रा