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तो क्या करेंगे ? बस, यहाँ भी यही हुआ । प्रसन्नचन्द्र राजर्षी भी उल्टी दिशा में पुत्र चिन्ता में फिसल गए। अरे रे ! यह चिन्ता की प्रक्रिया नहीं थी यह तो चिन्तन की साधना थी । चिन्तन की धारा के बीच में यदि चिन्ता की बात बीच में आ जाय तो जरूर पतन हो जाएगा । गाडी उल्टी चली जाएगी। लेकिन आप चिन्ताग्रस्त स्थिति में हो और यदि चिन्तन की धारा लग जाय तो तो कल्याण हो जाय । अतः शास्त्रकार महर्षि स्पष्ट कहते हैं कि— 'मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः ' शुभ या अशुभ ध्यान में लगा हुआ यह नही कर्म के बंध और मोक्ष दोनों का कारण बनता है ।
इसलिए जो कर्म की निर्जरा उत्तम कराए, क्षय कराते-कराते आत्म विशुद्धि बढाए वही ध्यान उत्तम है । इससे विपरीत कर्म का बंध करानेवाला अशुभ ध्यान है ।
यहाँ १२ वे क्षीण मोहनीय गुणस्थान पर ध्याता शुक्ल ध्यान के दूसरे चरण में आगे बढ रहा है । यह क्षपक साधक है। श्रेणी पर चढा हुआ साधक है। उत्तम ध्याता है । यह गुणस्थान अप्रतिपाती है । पतन संभव ही नहीं है। न तो वीतरागता का पतन होता है और न ही खपाए हुए कर्मों का पुनः बंध होता है । तथा न ही.. इस गुणस्थान से पुनः पतन हो सकता है । इसलिए साधक ध्याता निर्जरा करता करता आगे बढता ही जाता है । ध्यान की तीव्रता निर्जरा कराती ही जाती है अब आते आते असंख्य समय में से ९९% समय पसार करके ... अब उपान्त्य समय पर पहुँचता है । इसमें फरमाते हैं कि.... इत्येतद्ध्यानयोगेन, प्लुष्यत्कर्मेन्धनोत्करः ।
निद्रा प्रचलयोर्नाश-मुपान्त्ये कुरुत क्षणे ॥ ८० ॥
अब मोहनीय कर्म की कषाय- नोकषायादि की प्रकृतियाँ सभी क्षय हो जाने के कारण मोहनीय कर्म तो अंशमात्र भी शेष नहीं रहता है। न तो बंध में, न ही उदय में, न ही सत्ता में किसी में भी अवशिष्ट नहीं है । अतः अब क्षय करने का जो भी कार्य करेगा वह घाती कर्म के घर के अन्य कर्मों का क्षय करने का ही कार्य होगा । उसमें मुख्य है ज्ञानावरणीय तथा दर्शनावरणीय कर्मों को क्षय करने का । क्योंकि घाति कर्म के विभाग में १) ज्ञानावरणीय, २) दर्शनावरणीय, ३) मोहनीय और ४) अन्तराय इन ४ कर्मों की ही गणना है इन ४ में से एक मोहनीय कर्म जो सभी कर्मों का बडा राजा था उसका क्षय तो १२ वे गुणस्थान के पहले ही हो गया है। अब शेष ३ कर्मों का क्षय इस १२ वे गुणस्थान पर करना है । क्योंकि १३ वे गुणस्थान पर इन ३ में से किसी को भी साथ लेकर तो आगे जाना ही नहीं है । संपूर्ण चारों घाती कर्मों का क्षय करके ही १३ वे पर जाना है । इन में से
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आध्यात्मिक विकास यात्रा