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१३) क्रिया पद की आराधना करके- हरिवाहन राजा ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा है। १४) तप पद की आराधना करके- कनककेतु ने नामकर्म बांधा है। १५) दान (गौतम) पद की आराधना करके- हरिवाहन ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा है। १६) जिन पद की आराधना करके- जीमूतकेतु ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा है। १७) संयम पद की आराधना करके- पुरंदर राजा ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा है। १८) अभिनव ज्ञान पद की आराधना करके- सागरचंद्र राजा ने ती. नामकर्म बांधा है । १९) श्रुत पद की आराधना करके- रत्नचूड महाराज ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा है। २०) तीर्थ पद की आराधना करके– मेरुप्रभसूरि महाराज ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा है।
इस तरह आप ध्यान से देखेंगे तो बरोबर ख्याल आएगा कि २० अलग-अलग स्वतंत्र जीव हैं जिन्होंने अलग-अलग एक-एक पद की आराधना करके तीर्थंकर पद . की आराधना करके तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन किया है जो वर्तमान में देवगति में देवता के रूप में हैं। वहाँ से सीधे महाविदेह क्षेत्र में जाकर तीर्थंकर बनकर मोक्ष में जाएंगे। अतः एक पद की आराधना करके भी कई तीर्थंकर बने हैं और भविष्यकाल में भी बनेंगे ही। पद भी शाश्वत है, और पदों की आराधना तथा सर्व जीव कल्याण की भावना से तीर्थकर नामकर्म उपार्जन करने की प्रक्रिया भी शाश्वत है । अतः कोई भी बांध सकता है। तथा तीर्थंकर बनना भी शाश्वत मार्ग है । सदा काल तीर्थंकर बनते ही रहेंगे। अनन्त भूतकाल में अनन्त तीर्थंकर भगवान इसी तरह इसी प्रक्रिया से हुए हैं और भविष्य में भी होते ही रहेंगे । अनन्त काल भूतकाल में बीत चुका है, ऐसे अनन्तकाल में १ दिन भी ऐसा
खाली नहीं गया जिस दिन इस धरती
पर तीर्थंकर न रहे हो। धरती काफी ऐरावत क्षेत्र
लम्बी चौडी है । हमारी अल्प बुद्धि के कारण हम वर्तमान विश्व की पृथ्वी को सीमित मर्यादित ही मानते हैं। लेकिन
वास्तव में ऐसा नहीं है । यह पृथ्वी १ महाविदेह क्षेत्र
लाख योजन व्यास की गोलाकार थाली आकार की है। इसका विस्तार
१ लाख योजन का है । इसमें कर्मभूमि, जंबुद्विप
अकर्मभूमि, अन्तीप आदि हैं। १५ "कर्मभूमि में ही तीर्थंकर होते हैं। धर्म
१ लाख योजन विस्तार वाली पृथ्वी
भरत क्षेत्र
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आध्यात्मिक विकास यात्रा