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उपशमाता भी है । तथा २ समय न्यून आवलिका के काल में बंधे हुए लोभ के दलिकों को उतने ही काल में शान्त भी करता है । इस तरह करते करते जीव एक अन्तर्मुहूर्त के काल में गुणस्थान के चरम समय में पहुँचता है। तब सूक्ष्म संज्वलन लोभ सर्वथा शान्त होता है ।
अब साधक ११ वें उपशान्त कषाय वीतराग छद्मस्थ गुणस्थान में प्रवेश करता है । अपूर्वादि द्वयैकैकगुणेषु शमकः क्रमात् ।
करोति विंशते: शान्ति लोभाणुत्वं च तत्छमम् ॥ ४२ ॥
अपूर्वकरण तथा अनिवृत्ति नौंवें गुणस्थान पर उपशम श्रेणीवाला साधक दर्शनमोहनीय की ७ प्रकृति तथा संज्वलन लोभ इन ८ प्रकृतियों के सिवाय की मोहनीय कर्म की शेष २० प्रकृतियों को उपशान्त करता है । (२८ मो. की कुल - ८ = २० ) इसके •बाद अनुक्रम से आगे बढता हुआ उपशामक महात्मा सूक्ष्म संपराय नामक १० वे गुणस्थान पर जाकर संज्वलन की कक्षा के लोभ को बिल्कुल सूक्ष्म पतला कर देता है । इस प्रकार
सूक्ष्मीकरण की प्रक्रिया के बाद उपशान्त मोहनीय नामक १२ वे गुणस्थान पर पहुँचता है । १० वे पर जिस लोभ का सूक्ष्मीकरण किया वहीं वह शमक साधक उसे उपशान्त कर देता है । ११ वे गुणस्थान पर रहा हुआ महात्मा १ ही प्रकृति का बंध कर लेता है । तथा १४८ प्रकृतियों को सत्ता में रखता है । १० वे गुणस्थान पर लोभ का उपशमन करता करता जब संपूर्ण उपशान्त हो जाता है तब १० गुणस्थान पूर्ण हो जाता है और सीधा ही ११ वा उपशान्त मो० गुणस्थान आता है । उपशान्त का सीधा अर्थ ही यह है कि... सूक्ष्म लोभ को भी जिसने संपूर्ण रूप से शान्त कर दिया है, शमा दिया है, या दबा दिया है। वह उपशामक है । अतः उपशान्त मोहनीय ११ वे गुणस्थान पर पहुँचता है ।
उपशमश्रेणीवाले शमक की योग्यता
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पूर्वज्ञः शुद्धिमान् युक्तो, ह्याद्यैः संहननैस्त्रिभिः ।
संध्यायन्नाद्यशुक्लांशं, स्वां श्रेणीं शमकः श्रयेत् ॥ ४० ॥
उपशम श्रेणी पर आरोहण करनेवाला योगी भी कोई जैसा - तैसा सामान्य नहीं है । गुणस्थान क्रमारोह ग्रन्थकार महर्षि फरमाते हैं कि... ४ ध्यान में चौथा जो शुक्लध्यान है उसमें प्रवेश करनेवाला प्रथर्म चरण का ध्यानी-योगी है। शुक्लध्यान को अपना विषय करता हुआ अपनी उपशम श्रेणी का प्रारम्भ करता है । परन्तु वह कम से कम पूर्वगत ज्ञान को जाननेवाला होता है । (जैन साहित्य-शास्त्र के विषय में – आगम शास्त्र, अंग - उपांग
आध्यात्मिक विकास यात्रा