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में जाने के लिए निर्वाण प्राप्त करने हेतु मरना हो तो तो वह अन्तिम मृत्यु है । इसलिए उसे आगामी भव का आयुष्य बांधकर मरने का सवाल ही नहीं है । लेकिन इसके सिवाय कहाँ कितना अवकाश रहता है ? और कहाँ जीव मर सकता है, तथा कहाँ न मरते हुए भी आगमी भव का आयुष्य बांधता है इसका भी विचार करना चाहिए।१ ले मिथ्यात्व, २ सास्वादन, ४ अविरत स०, ५ देशविरत, ६ प्रमत्त, ७ अप्रमत्त साधु, ८ अपूर्वकरण, ९ अनिवृत्ति बादर, १० सूक्ष्म संपराय, ११ उपशान्त मोहनीय, और १४ वा अयोगी केवली इन ११ (१, २, ४,५,६,७,८, ९, १०, ११, १४) गुणस्थानों पर वर्तमान जीवों के वर्तमान आयुष्य की समाप्ति होने पर मृत्यु हो सकती है । इन ११ गुणस्थान पर मर सकता है। अतः इन ११ के व्यतिरिक्त ३ रा मिश्र, १२ क्षीणमोह, और १३ वा सयोगी केवली इन ३ गुणस्थान पर मृत्यु संभव ही नहीं है । कभी नहीं मरता है साधक। .
१४ गुणस्थानों पर सर्वत्र सभी गुणस्थान पर आयुष्य कर्म का बंध होता है या नहीं? वैसे आठों कर्मों के बंध का विचार करना चाहिए। लेकिन यहाँ प्रसंगवश पहले मात्र आयुष्य कर्म के बंध का विचार करते हैं । जी हाँ .. एक बात को सावधानी से समझ लीजिए- कि आयुष्य की समाप्ति होनी और नए आयुष्य का बंध होना ये दोनों बातें बिल्कुल अलग-अलग हैं। कई बार लोग भ्रमणावश इन दोनों बातों में भेद नहीं कर पाते हैं । आयुष्य की समाप्ति से तात्पर्य है मृत्यु । जो गत जन्म में उपार्जित किया हुआ आयुष्य वर्तमान जन्म में जो भुगत रहा है वह चालु आयुष्य पूर्ण होता है । समाप्त होता है । बस, आयुष्य की समाप्ति को ही मृत्यु कहते हैं। ____ आयुष्य बंध का तात्पर्य है जो वर्तमान भव का आयुष्य समाप्त करने से पहले, अर्थात् मरने के पहले आगामी जन्म में जिसे जहाँ उत्पन्न होना है उसे तो आयुष्य बांधना ही पडता है । मोक्ष में जानेवाला ही आयुष्य नहीं बांधता है लेकिन उसके सिवाय अर्थात् मोक्ष में जो न जानेवाला हो वह तो आयुष्य बांधे बिना मृत्यु पाएगा ही नहीं। तो वह कहाँ किस गुणस्थान पर आयुष्य बांधता है ? यह भी देखना है । ऐसा भी कोई नियम नहीं है कि...जिस गुणस्थान पर आयुष्य की समाप्ति करता है उसी गुणस्थान पर नया आयुष्य बांधे । अतः हो सकता है कि भिन्न गुणस्थान पर आयुष्य बांधे और भिन्न गुणस्थान पर आयुष्य समाप्त हो । हो सकता है कि.. पीछले किसी गुणस्थान से आयुष्य बांध कर आगे के गुणस्थान पर आया हो और वहाँ (जहाँ आया है) उस दूसरे गुणस्थान पर मृत्यु पाए। इतना ही नहीं, सातवे गुणस्थान अप्रमत्त संयत पर आयुष्य का बंध नहीं पडता है लेकिन छठे गुणस्थान पर आयुष्य बांधता–बांधता गुणस्थान बदल जाय और जीव७ वे
क्षपकश्रेणि के साधक का आगे प्रयाण
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