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हाँ, बीच के २, ३ दूसरे-तीसरे गुणस्थान पर भी हो सकते हैं । समुद्र की लहरों की तरह चढाव-उतार तो होता ही रहता है । अतः सम्यक्त्व से गिरते हुए आनेवाले ३ रे, दूसरे दोनों पर हो सकते हैं । तथा चढनेवाले ३ रे मिश्र वृत्तिवाले भी हो सकते हैं। गुणस्थानों का कम-ज्यादा काल
१ ले मिथ्यात्व के गणस्थान का काल अनन्तवर्षों का भी है। अनादि-अनन्त भी है। अभवी-दर्भवी जीव तो अनादि काल से मिथ्यात्वी ही है। और भविष्य के अनन्त काल तक भी मिथ्यात्वी ही रहेंगे। परन्तु भवी जीवों का मिथ्यात्व जो अनादि-सान्त है, उसका तो अन्त हो के ही रहेगा। जी हाँ, आदि नहीं अतः अनादि कहा है । लेकिन कभी न कभी अन्त तो जरूर ही होगा। इसलिए वे मोक्ष में जाएंगे ही। अतः १ ला गुणस्थान तो छटेगा ही और मिथ्यात्व जाएगा ही और जीव आगे बढेगा ही। जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति तो अनन्तकालीन है ही । सादि-सान्त मिथ्यात्व की स्थिति जघन्य से अंतर्मुहूर्त की ही रहती है । उत्कृष्ट से अर्धपुद्गल परावर्त देशोन भाग की
• दूसरे गुणस्थान की जघन्य १ समय और उत्कृष्ट ६ आवलिका की है । तिसरे मिश्र गुणस्थान की जघन्य और उत्कृष्ट दोनों ही अंतर्मुहूर्त की है । ४ थे गुणस्थान का काल जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से६६ सागरोपम की है । तथा ३ पूर्व क्रोड वर्ष की भी है। देव भव में समकिती देवता का आयुष्य काफी लम्बा होता है । तथा ५ से ६ जन्म तक लगातार समकित सहित ही भव करे तो इतना लम्बा काल निकलता है।
५ वे गुणस्थान पर व्रतधारी का काल भी उत्कृष्ट से देशोन पूर्वक्रोड वर्ष का ही है। कर्म भूमि में मनुष्य का आयुष्य ज्यादा से ज्यादा पूर्व क्रोड वर्ष का होता है । १५ कर्म भूमि के मनुष्यों के सिवाय संसार में अन्य कोई जीव५ वे गुणस्थान पर चढता ही नहीं है और व्रत-पच्चक्खाण स्वीकारते ही नहीं हैं । हाँ, तिर्यंच गति के पशु-पक्षी की संभावना ५ वे गुणस्थान पर जरूर रहती है । देव-नारकी के लिए तो ५ वाँ गुणस्थान संभव ही नहीं है । कर्मभूमिज मनुष्य के जन्म के ८ ॥वर्ष के पश्चात् व्रत-प्रतिज्ञा दीक्षादि स्वीकार करता है। अतः देशोन पूर्व क्रोड वर्ष का काल ५ वे गुणस्थान का बताया जाता है । जघन्य तो सिर्फ अन्तर्मुहूर्त है ही।
छट्टे प्रमत्त संयत गुणस्थान साधु की भी काल स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट से देशोनपूर्वक्रोडवर्ष की है । कर्मभूमि में पैदा हुआ मनुष्य ८ ॥ वर्ष पश्चात् दीक्षा लेकर इतने लम्बे काल तक दीक्षा-चारित्र धर्म पाल सकता है।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा