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की पूर्व तैयारी स्वरूप हैं । ध्यान में कौनसा विषय चुनना? किस विषय पर केन्द्रित होकर ध्यान में स्थिर होना है उसके लिए भावनाएं पूर्वभूमिका रूप है। चयनिका रूप है । या अवतरिका रूप अवतरणि है। कुए में उतरने के लिए मानों सीढि है। ध्यान के लिए सहायक है।
इस तरह अप्रमत्त ४ थे गुणस्थान के लिए तथा७ वे से आगे के गुणस्थानों पर आगे बढने के लिए ध्यान मार्ग ही एकमात्र विकल्प है । अतः ध्यानी अप्रमत्त और अप्रमत्त ही ध्यानी बनकर रहे तो ही वैसे रह सकते हैं । अप्रमत्तता ध्यान के बिना नहीं रह सकती है
और ध्यान अप्रमत्तभाव के बिना नहीं टिक सकता है। दोनों एक दूसरे के पूरक, सहयोगी, उपयोगी एवं उपकारी हैं । अतः ७ वे से आगे के सभी गुणस्थान ध्यान-साधना के हैं। इसीलिए प्रतिक्रमण-आवश्यकादि का विधान गौण कर दिया गया है वह ध्यान की प्रधानता के कारण । अतः प्रस्तुत १५ वे प्रवचन पुस्तिका लेखन में विस्तार से ध्यान, ध्यानांग ध्यान सामग्री, आदि विस्तृत रूप से फिर भी संक्षिप्त में लिखी है। स्वतंत्र अभ्यासुओं को इस विषय के स्वतंत्र ग्रंथों का अभ्यास विशेष रूप से करना चाहिए। ध्यान साधना सही करके अपनी कर्मनिजरा करते हुए विकास साधते जाइए।
॥ ध्यानसाधनात् आत्मनः विकासं कुरु ॥
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आध्यात्मिक विकास यात्रा