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अथ दिनचर्यायां प्रथमोल्लास : : 43
की सम-विषम संख्या से या प्रश्नकर्त्ता के स्वर से शुभाशुभ का फल कहना चाहिए । नामग्राहं द्वयोः प्रश्ने जयाजयाविधौ वदेत् ।
पूर्वोक्तस्य जयः पूर्णः पक्षे रिक्ते परस्य च ॥ 107 ॥
जब कभी वादी-प्रतिवादी दोनों व्यक्तियों के नाम लेकर उनके जय-पराजय का कोई प्रश्न करे तो प्रश्नकर्ता मनुष्य जिस ओर खड़ा हो, उस ओर का अपना स्वर बहता हो तो पहले जिसका नाम लिया हो, उसकी विजय होता है और यदि वह पार्श्व रिक्त हो तो पीछे से जिसका नाम लिया हो, उसकी विजय होगी- ऐसा कहना चाहिए ।
रोगी प्रश्नमाह
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रोगप्रश्ने च गृह्णीयात्पूर्वं ज्ञान्यभिधां यदि ।
पश्चाद्वयाधिमतो नाम तज्जीवति स नान्यथा ॥ 108 ॥
जब कोई व्याधि पीड़ित के सम्बन्ध में प्रश्न करे और उसमें पहले जिससे प्रश्न करना हो उस निमित्ति का नाम उच्चारण करता हो तथा बाद में रोगी का नाम ता रोगी जीवित रहता है, अन्यथा नहीं ।
सूर्यनाडीविचारं -
बद्धानां रोगितानां च प्रभ्रष्टानां निजात्पदात् । प्रश्ने युद्धविधौ वैरि सङ्गमे सहसा भये ॥ 109 ॥ स्नाने पानेऽशने नष्टान्वेषे पुत्रार्थमैथुने ।
विवाहे दारुणेऽर्थे च सूर्यनाडी प्रशस्यते ॥ 110॥
कारागार में पड़ा हुआ, रोग से ग्रस्त और अपने अधिकार से भ्रष्ट - इन तीनों किसी के भी सम्बन्ध में प्रश्न करना हो; युद्ध करना हो, शत्रु से भेंट करनी हो, अचानक आपदा आ पड़ी हो, स्नान करना, खाना-पीना चोरी या खोई हुई वस्तु को ढूँढ़ना हो, पुत्र प्राप्ति के लिए स्त्रीसङ्ग करना, विवाह और कोई भी सुकर्म करना हो तो सूर्यनाड़ी को प्रशस्त जानना चाहिए।
नासायां दक्षिणायां तु पूर्णायामपि वायुना ।
प्रश्नाः शुभस्य कार्यस्य निष्फलाः सकला अपि ॥ 111 ॥
इति प्रश्नोपयोगी स्वरविचारः ।
प्रश्नकर्ता की जो पूर्ण नासिका प्रवाहित होती हो, उस समय शुभ कार्य के निमित्त किए गए सब प्रश्न निष्फल होते हैं, ऐसा जानना चाहिए।
अथ तपाराधनाविचारं -
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