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अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लासः : 197
धर्मशास्त्रश्रुतौ शश्चल्लालसं यस्य मानसम्। परमार्थं स एवेह सम्यग्जानाति नापरः॥ 134॥
जिस पुरुष का हृदय निरन्तर धर्मशास्त्रीय वचनों को सुनने की आकांक्षा रखता हो, वही परमार्थ के पथ को अच्छी तरह जान सकता है, अन्य कोई नहीं। ज्योतिषश्शास्त्रस्वरूपमाह -
ज्योतिःशास्त्रं समीक्ष्यं च त्रिस्कन्धं विहितादरः। गणितं संहिता होरेत्येतत्स्कन्धत्रयं विदुः॥ 135॥
ज्योतिष शास्त्र का भी आदरपूर्वक अभ्यास करना चाहिए। उसके गणित, संहिता और होरा- ये तीन स्कन्ध जिसके कहे जाते हैं। अथायुर्वेदविषयाः
प्रकृति भेषजं व्याधि सात्म्य देहं बलं वयः। कालं देशं तथा वहिं विभवं प्रतिचारकम्।। 136॥ विजानन् सर्वदा सम्यक् फलदं लोकयोद्धयोः। अभ्यसेवेद्यकं धीमान् यशोधर्मार्थसिद्धये॥ 137॥
सामान्यतया रोग की प्रकृति, औषध, व्याधि, सात्म्य, शरीरबल, आयु, काल, देश, जठराग्नि, वैभव और प्रतिचारक- इतनी बातों को बराबर जानकर बुद्धिमान् पुरुष को इस लोक ही नहीं परलोक में भी उत्तम फल देने वाले वैद्यकशास्त्र का यश, धर्म और धन के लाभ के लिए निरन्तर अभ्यास करना चाहिए। वैद्यकशास्त्राङ्गमाह -
कायबालम्रहोर्ध्वाङ्ग शल्यदंष्ट्रा जराविषैः। एतैरष्टभिरङ्गैश्च वैद्यकं ख्यातमष्टधा॥ 138॥
आयुर्वेद के आठ अङ्ग प्रसिद्ध हैं- 1. काय चिकित्सा, 2. बालचिकित्सा, 3. भूतचिकित्सा, 4 ऊर्ध्वाङ्गचिकित्सा, 5. शल्यचिकित्सा, 6. विषचिकित्सा, 7. रसायन और 8. वाजीकरण।" .. जठरस्यानलः कायो बालो बालचिकित्सितम्। ग्रहो भूतादिवित्रास ऊर्ध्वाङ्गमूलवशोधनम् ॥ 139॥
........... * नारदसंहिता में आया है-सिद्धान्तसंहिताहोरारूपं स्कन्धत्रयात्मकम्। वेदस्य निर्मलं चक्षुर्योंति:
शास्त्रमनुत्तमम्॥ (नारद. 1, 4) . *अङ्गाष्टम हारीत ने इस प्रकार बताए हैं- शल्यं शालाक्यमगदं कुमारभरणं तथा। कायभूतक्रिया वाजीकरणं च रसायनम् ॥ नाराचकाष्ठवल्लीभिः शक्तिकुन्तैश्च तोमरैः । खङ्गैर्विभिन्नगात्रस्य तत्र स्याद्यदि शल्यकम्॥ तस्य प्रतीकारकर्म यत्तत् शल्यचिकित्सितम्॥ (वीरमित्रोदय लक्षणप्रकाश पृष्ठ 212)