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अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लास: : 223
प्रकृति और पुरुष पृथक् हो अर्थात् प्रकृति का वियोग हो तब मोक्ष होता है, ऐसा सांख्य कहते हैं और वह मोक्ष ही 'ख्याति' के नाम से पहचाना जाता है। साङ्ख्यः शिखी जटी मुण्डी कषायाद्यम्बरोऽपि च । वेषेऽनास्थैव साङ्ख्यस्य पुनस्तत्त्वे महाग्रहः ॥ 284 ॥
सांख्य मतावलम्बी शिखाधारी, जटाधारी और मुण्डी भी होते हैं और कषाय वस्त्र धारण करते हैं। इन्हीं वेश की विशेष कोई अपेक्षा नहीं किन्तु ये उपर्युक्त तत्त्वों के प्रति आग्रह रखते हैं । *
अथ शैवमतम्
शिवस्य दर्शने तर्कावुभौ न्यायविशेषकौ ।
न्याये षोडशतत्त्वी स्यात्षट्तत्त्वी च विशेषके ॥ 285 ॥
शैवदर्शन में 'न्याय' और 'वैशेषिक' नाम के दो तर्क मत हैं। न्याय मत में 16 तत्त्व और वैशेषिक मत में 6 तत्त्व स्वीकारे गए हैं।"
अन्योऽन्यतत्त्वान्तर्भावाद्वयोर्भेदोऽस्ति नास्ति वा ।
द्वयोरपि शिवो देवो नित्यः सृष्ट्यादिकारकः ॥ 286 ॥
एक मत वाले के 16 और दूसरे के 6 तत्त्व मानने से इनमें परस्पर भेद हैं। तब भी 16 तत्त्वों का 6 तत्त्वों में सम्मिलन कर लिया जाए तो विशेष भेद नहीं हैं। दोनों के मत से देव शिव हैं जो कि नित्य और सृष्टि व स्थिति तथा संहारकर्ता है। नैयायिकानां चत्वारि प्रमाणानि मतानि च ।
प्रत्यक्षमागमोऽन्यच्चानुमानमुषमापि च ॥ 287 ॥
उक्त शैव दर्शन के न्याय मत के अनुसार प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द- ये चार प्रमाण कहे जाते हैं।
प्रमाणं च प्रमेयं च संशयश्च प्रयोजनम् । दृष्टान्तोऽप्यथ सिद्धान्तावयवौ तर्कनिर्णयौ ॥ 288 ॥ वादो जल्पो वितण्डा च हेत्वाभासाश्छलानि च । जायतो निग्रहस्थानानीति तत्वानि षोडश ॥ 289 ॥
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कहा भी गया है— पञ्चविंशतितत्त्वज्ञो यत्र तत्राश्रमे रतः । शिखी मुण्डी जटी वापि मुच्यते नात्र संशयः ॥ (सांख्यकारिका माठरवृत्ति पृष्ठ 38 )
** यह मान्यता षड्दर्शनसमुच्चय की टीका के अनुसार प्रतीत होती हैं जिसमें कहा गया है कि नैयायिक लोग सदा शिव की भक्ति करते हैं अतः शास्त्रों में इन्हें शैव कहा गया है तथा वैशेषिकों को पाशुपत कहते हैं— शास्त्रेषु नैयायिकाः सदा शिवभक्तत्वाच्छैवा इत्युच्यन्ते, वैशेषिकास्तु पाशुपता इति । (षड्दर्शन. पृष्ठ 78) आचार्य हरिभद्रसूरि का भी मत है- अक्ष (आक्ष) पादमते देवःसृष्टिसंहारकृच्छिवः । विभुर्नित्यैकसर्वज्ञो नित्यबुद्धिसमाश्रयः ॥ देवताविषयो भेदो नास्ति नैयायिकैः समम्। वैशेषिकाणां तत्त्वे तु विद्यतेऽसौ निदर्श्यते ॥ (तत्रैव 13 तथा 5, 59 )