Book Title: Vivek Vilas
Author(s): Shreekrushna
Publisher: Aaryavart  Sanskruti Samsthan

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Page 278
________________ 276 : विवेकविलास जलपिष्टादियोगस्य मद्यस्य मदशक्तिवत् । अचेतनेभ्येश्चैतन्यं भूतेभ्यस्तद्वदेव हि ॥ 82 ॥ (एक और शङ्का है) जिस प्रकार जल, आटा आदि वस्तु आदि के मिश्रण से मद्य में मादक शक्ति आती है, वैसे ही अचेतन पञ्च महाभूतों का मिश्रण होने से चैतन्य उत्पन्न होता है ? उत्तरम् - शक्तिर्नविद्यते येषां भिन्नभिन्नस्थितिस्पृशाम् । समुदायेऽपि न तेषां शक्तिर्भीरुषु शौर्यवत् ॥ 83 ॥ (इसका उत्तर है) वस्तुएँ अलग-अलग होने पर भी यदि उनमें शक्ति नहीं, वह शक्ति उन्हीं वस्तुओं के समुदाय में होती ही नहीं है। जिस प्रकार न्यारे-न्यारे रहने वाले डरपोक लोगों में शौर्य नहीं पाया जाता, वैसे ही उनके समुदाय में भी शौर्य नहीं होता है। प्रत्यक्षैकप्रमाणस्य नास्तिकस्य न गोचरः । आत्मा ज्ञेयोऽनुमानाद्यैर्वायुः कम्पैः पटैरिव ॥ 74 ॥ एक प्रत्यक्ष प्रमाण को ही स्वीकारने वाले नास्तिक को जीव का बोध नहीं होता है क्योंकि जैसे हिलने वाले वस्त्र पर से वायु की कल्पना की जा सकती है, वैसे ही जीव भी अनुमान भी करना चाहिए। अङ्कुरः सुन्दरे बीजे सूर्यकान्ते च पावकः । सलिलं चन्द्रकान्ते च युक्त्यात्माङ्गेऽपि साध्यते ॥ 85 ॥ जिस प्रकार सुन्दर बीज में अङ्कुर, सूर्यकान्तमणि में अग्नि और चन्द्रकान्तमणि कहा गया है और युक्ति से सिद्ध भी किया जाता है वैसे ही शरीर में जीवात्मा है जिसे भी युक्ति से ही सिद्ध किया जाता है। प्रत्यक्षेण प्रमाणेन लक्ष्यते न जनैर्यदि । तन्नास्तिक तवाङ्गे किं नास्ति बुद्धिः कुरूत्तरम् ॥ 86 ॥ यदि तुम यह कहते हो कि 'लोगों को प्रत्यक्ष प्रमाण से जीव का बोध नही होता तो हम पूछते हैं कि 'हे नास्तिक! तेरे शरीर में बुद्धि है कि नहीं बताओ ?' अप्रत्याक्षा तवाम्बा चेद्दूरदेशान्तरं गता । जीवन्त्यपि मृता हन्त नास्ति नास्तिक सा कथम् ॥ 87 ॥ हे नास्तिक ! दूर देशान्तर में गमन कर चुकी तुम्हारी महतारी नहीं दीखती है तो क्या तुम्हारे मत से वह जीवित होते हुए भी मृत्यु को प्राप्त हो गई ? तिलकाष्ठपयः पुष्पेष्वासते क्रमशो यथा । तैलानिघृतसौरभ्याण्येवमात्मापि विग्रहे ॥ 88 ॥

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