Book Title: Vivek Vilas
Author(s): Shreekrushna
Publisher: Aaryavart  Sanskruti Samsthan

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Page 291
________________ ....पिछले फ्लैप का शेष इस लक्षण-ज्ञानात्मक ग्रन्थ के श्लोकों की प्रामाणिकता का ही यह परिणाम है कि इसके श्लोक सायण माधवाचार्यकृत सर्वदर्शनसंग्रह (13-14वीं सदी), सूत्रधारमण्डन कृत वास्तुमण्डन (15वीं सदी, वर्धमानसूरी कृत आचारदिनकर (15वीं सदी), वासुदेवदैवज्ञ कृत वास्तुप्रदीप (16वीं सदी), सूत्रधार गोविन्दकृत उद्धारधोरणी (16वीं सदी), टोडरमल्ल के निर्देश पर नीलकण्ड द्वारा लिखित टोडरानन्द (16वीं सदी), मित्र मिश्र कृत वीर मित्रोदय के लक्षणप्रकाश (17वीं पदी) आदि में उद्धृत किए गए हैं। इसी प्रकार वास्तु, प्रतिमा सम्बन्धी कई मत चन्द्राङ्गज ठक्कर फेरु (14वीं सदी) के लिए निर्देशक बने हैं। __इस ग्रन्थ में तत्कालीन जीवन व संस्कृति की अच्छी झलक है। इसके सारे ही विषय रचनाकाल में तो उपयोगी थे ही आज भी इनका उपयोग किसी भी दृष्टि से कम नहीं है। प्रसङ्गतः सभी विषय जीवनोपयोगी हैं और सभी के लिए बहुत महत्व के हैं। ग्रन्थकार का यह मत वर्तमान में धार्मिक-साम्प्रदायिक एकता का महत्व प्रतिपादित करता है-ऐसा कौन व्यक्ति है जो कि 'मेरा धर्म श्रेष्ठ है' ऐसा नहीं कहता?किन्तु जिस प्रकार दूर खड़े मनुष्य से आम अथवा नीम का भेद नहीं जाना जा सकता, वैसे ही धर्म का भेद उस मनुष्य से नहीं जाना जा सकता श्रेष्ठो मे धर्म इत्युच्चैबूते कः कोऽत्र नोद्धतः। भेदो न ज्ञायते तस्य दूरस्थैराम्रनिम्बवत् ॥ (10, 14)

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