Book Title: Vivek Vilas
Author(s): Shreekrushna
Publisher: Aaryavart  Sanskruti Samsthan

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Page 281
________________ अथ परमपदनिरूपणं नामाख्यं द्वादशोल्लासः ॥ 12 ॥ अधुना कालादिविचारमाह ― दुःस्वप्रैः प्रकृतित्यागैर्दुर्निमित्तैश्च दुर्ग्रहैः । हंसप्रचारान्यत्वैश्च ज्ञेयो मृत्युः समीपगः ॥ 1 ॥ बुरे स्वप्न देखकर, अपनी प्रकृति के अचानक बदलने से, बुरे निमित्त से, बुरे ग्रह से और हंसचार (स्वर सञ्चार) के परिवर्तन से आसन्न मृत्यु का लक्षण जानना चाहिए । अन्त्यकाल कर्तव्य - प्रायश्चितं व्रतोच्चारं संन्यासं जन्तुमोचनम् । गुरुदेवस्मृतिं मृत्य स्पृहयन्ति विवेकिनः ॥ 2 ॥ 1 विवेकी पुरुष मृत्य के समीप आने पर प्रायश्चित (आलोचना ), व्रताचार, संन्यास, जीवमोचन, और देव - गुरु का स्मरण - इन बातों की पालना अवश्य करते हैं अनार्त्तः शान्तिमान् मृत्यौ न तिर्यङ् नापि नारकः । धर्मध्यानी सुरा मर्त्योऽनशनी त्वमरश्वेरः ॥ 3 ॥ जो व्यक्ति मरण-समय आर्त्त ध्यान नहीं करे और शान्ति में रहे, वह मनुष्य तिर्यञ्च या नरकगति में नहीं जाता; जो धर्म ध्यान करता है और अनशन करता वह देवताओं का स्वामी होता है। तप्तस्य तपसः सम्यक् पठितस्य श्रुतस्य च । पालितस्य व्रतस्यापि फलं मृत्युः समाधिना ॥ 4 ॥ अङ्गीकृत तपस्या, सम्यक् प्रकार से पठित शास्त्र और अच्छी तरह से पालित व्रत- इन तीनों का फल समाधिमरण होता है। अजडेनापि मर्तव्यं जडेनापि हि सर्वथा । अवश्यमेव मर्तव्यं किं बिभ्यति विवेकिनः ॥ 5 ॥

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