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अथ प्रशस्तिः : 283 आधारः सर्वधर्माणामवधिनिशालिनाम्। आस्थानं सर्वपुण्यानामाकरः सर्वसम्पदाम्॥7॥ प्रतिपत्रात्मजस्तस्य वायडान्वयसम्भवः। धनपालः शुचिर्धीमान् विवेकोल्लासिमानसः॥8॥
सभी धर्मों का आधार, ज्ञानशाली लोगों में अग्रगण्य, समस्त पुण्यों का वासस्थल, समस्त सम्पदाओं का आकरस्थल- ऐसा पवित्र, बुद्धिमान, विवेक से विकास प्राप्त करने वाले मन का धारक और वायड वंश में उत्पन्न हुआ 'धनपाल' नामक देवपाल का प्रसिद्ध पुत्र हुआ।
तन्मनस्तोषपोषाय जिनोधैर्दत्तसूरिभिः। श्रीविवेकविलासाख्यो ग्रन्थोऽयं निर्ममेऽनघः॥9॥
उक्त धनपाल के मन को सन्तुष्ट करने के निमित्त श्रीजिनदत्त सूरि ने इस 'विवेकविलास' संज्ञाभिधान वाले पवित्र ग्रन्थ की रचना की है।
देवः श्रीधरणो भुजङ्गमगुरुर्यावद्युगादिप्रभोः श्रीमद्विश्वविदः प्रविस्फुरकलालङ्कारशृङ्गारिणः ।
भक्तिव्यक्तिविशेषमेष कुरुते तावच्चिरं नन्दतात् -ग्रन्थोऽयं भृशमभूथादरपरैः पापठ्यमानो बुधैः ॥10॥
नागकुमार का स्वामी श्रीधरणेन्द्र देव, स्फुरण प्राप्सिरत सर्व कलाओं को शोभित करने वाली और सर्वज्ञ श्रीयुगादिप्रभु ऋषभ भगवान् की अतिशय भक्ति जहाँ तक प्रकट करता है, वहाँ तक पण्डित प्रवरों द्वारा आदरपूर्वक और बारम्बार पठन योग्य यह (विवेकविलास) ग्रन्थ चिरस्थायी हो।
समाप्तश्चायं ग्रन्थः। शम्।