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अथ ध्यानस्वरूपनिरूपणं नामाख्यं एकादशोल्लास: : 275
(उक्त शङ्का का उत्तर) जैसे कोठी में चोर रखा था, उसके बजाए हुए शङ्ख का नाद बाहर किस तरह निकला ?
अग्निर्मूर्तः कथं घ्माते लोहगोले विशत्यहो । अमूर्तस्यात्मनस्तत्किं विहन्येतां गमागमौ ॥77॥
यह भी आश्चर्य है कि तपे हुए लोह के गोले में साकार अग्नि किस तरह प्रवेश करती है ? ऐसे ही साकार वस्तु का प्रवेश-निर्गमन होता है तो फिर निराकार जीव है तो वह क्यों नहीं दिखाई देता ?
पुनरपि शङ्का
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दस्योरन्यस्य काये च शतशः शकलीकृते ।
न दृष्टः क्वचिदप्यात्मा सोऽस्ति चेत्कि न दृश्यते ॥ 78 ॥
(पुन: शङ्का है) एक तस्कर के सैकड़ों टुकड़े कर डाले, तो भी जीव दिखाई नहीं देता, यदि जीव है तो वह दिखाई क्यों नहीं देता ?
उत्तरम् -
खण्डितेऽप्यरणेः काष्ठे मूर्ती वह्निर्वसन्नपिः ।
न दृष्टो दृश्यते किं वा जीवो मूर्तिविवर्जितः ॥ 79 ॥
(उक्त शङ्का का उत्तर) अरणि के वृक्ष के काष्ट के टुकड़े कीजिये तो भी उसके भीतर विद्यमान साकार अग्रि नहीं दीखती । फिर, शरीर में रहा हुआ निराकार जीव कैसे दिखाई देगा ।
अन्य शङ्का
जीवन्नन्यतरश्चोरस्तोलितो मारितोऽथच |
श्वासरोधेन किं तस्य तोलने न घनोनता ॥ 80 ॥
(अन्य शङ्का है) एक जीवित चोर का वजन किया और उसको श्वास रोककर मारने के बाद पुनः तौला किन्तु उसका भार कम-ज्यादा क्यों नहीं हुआ ? उत्तरम्
दृतेः पूर्णस्य वातेन रिक्तस्यापि च तोलने ।
तुला समा तथाङ्गस्य सात्मनोऽनात्मनोऽपि च ॥ 81 ॥
(इसका उत्तर है) पानी की मशक वायु से भरी हुई हो या खाली हो उसे तौलिए, तौल में एक-सी होगी। वैसे ही शरीर जीव हो या न हो तो भी तौल में एक सा ही होगा ।
अन्य शङ्का
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