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224 : विवेकविलास
इसके अतिरिक्त न्याय मत के 1. प्रमाण, 2. प्रमेय, 3. संशय, 4. प्रयोजन, 5. दृष्टान्त, 6. सिद्धान्त, 7. अवयव, 8. तर्क, 9. निर्णय, 10. वाद, 11. जल्प, 12. वितण्डा, 13. हेत्वाभास, 14. छल, 15. जाति एवं 16. निग्रहस्थल- ये सोलह पदार्थ, तत्त्व कहे गए हैं।
वैशेषिकमते तावत्प्रमाणत्रितयं भवेत्। प्रत्यक्षमनुमानं च तातीयिवस्तथागमः ॥ 290॥
इसी प्रकार से 1. प्रत्यक्ष, 2. अनुमान और 3. शब्द ये ही प्रमाण वैशेषिक के मतानुसार कहे गए हैं।
द्रव्यं गुणस्तथा कर्म सामान्यं सविशेषकम्। समवायश्च षट्तत्वी तव्याख्यानमथोच्यते॥ 291॥
वैशेषिक के मतानुसार 1. द्रव्य, 2. गुण, 3. कर्म, 4. सामान्य, 5. विशेष और 6. समवाय- ये छह तत्त्व कहे गए हैं।
द्रव्यं नवविधं प्रोक्तं पृथिवीजलवह्नयः। वायुर्दिक्काल आत्मा च गगनं मन एव च ॥ 292॥
वैशेषिक के मतानुसार 1. पृथ्वी, 2. जल, 3. अग्नि, 4. वायु, 5. आकाश, 6. काल, 7. दिशा, 8. आत्मा और 9. मन- ये नौ द्रव्य हैं।
- नित्यानित्यानि चत्वारि कार्यकारणभावतः। . व्योम दिक्काल आत्मा च मनो नित्यानि पञ्च च।। 293 ॥
इनमें कार्य-कारण भाव से पृथ्वी, जल, तेज, और वायु- ये चार द्रव्य कारण रूप से अनित्य और कार्यरूप से अनित्य हैं और आकाश, दिशा, काल, आत्मा, और मन- ये पाँच द्रव्य केवल नित्य ही हैं।
स्पर्शो रूपं रसो गन्धः सङ्ख्याथ परिमाणकम्। पृथक्त्वमथ संयोगो विभागश्च परत्वकम्।। 294॥ अपरत्वं बुद्धिसौख्ये दुःखेच्छे द्वेषयनको। धर्माधर्मों च संस्कारो गुरुत्वं द्रवतेत्यपि। 295 ॥ स्नेहः शब्दो गुणा एवं विंशतिश्चतुरन्विता।
वैशेषिक के मतानुसार 1. स्पर्श, 2. रूप, 3. रस, 4. गन्ध, 5. संख्या, 6. परिमाण, 7. पृथक्त्व, 8. संयोग, 9. विभाग, 10. परत्व, 11. अपरत्व, 12. बुद्धि, 13. सौख्य, 14. दुःख, 15. इच्छा, 16. द्वेष, 17. प्रयत्न, 18. धर्म, 19. अधर्म, 20. संस्कार, 21. गुरुत्व, 22. द्रवत्व, 23. स्नेह और 24. शब्द- ये चौबीस गुण हैं।
अथ कर्माणि वक्ष्यामः प्रत्येकमभिधानतः ।। 296॥