Book Title: Vivek Vilas
Author(s): Shreekrushna
Publisher: Aaryavart  Sanskruti Samsthan

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Page 247
________________ अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लासः : 245 जब फल प्राप्ति का काल हो तब प्रमाद करे और असमय व्यर्थ उद्यम करे, शत्रु सम्मुख आया हो तथा वह कोई क्षति नहीं करेगा ऐसा सन्देह नहीं करे तो ऐसा व्यक्ति तो चिरकाल तक उन्नत स्थिति में नहीं रह पाता है। दम्भसरम्भिभि ह्यो । दम्भमुक्तेष्वनादरी। शठस्त्रीवाचि विश्वासी विनश्यति न संशयः॥417॥ जो व्यक्ति दम्भी लोगों के षड्यन्त्र में आ जाए, दम्भहीन सजनों को धिक्कारे और धूतों व मिथ्या स्त्री वचनों पर विश्वास करता हो, वह निःसन्देह नष्ट होता है। ईर्ष्यालुः कुलटाकामी निर्द्धनो गणिकाप्रियः। स्थविरश्च विवाहेच्छुरुपहासास्पदं नृणाम्॥418॥ स्वयं ईर्ष्यालु होते हुए कुलटा का कामी, निर्धन होकर भी गणिका प्रिय होने का इच्छुक और वृद्ध होकर विवाहैच्छा करने वाले का लोक में उपहास ही होता है। कामिस्पर्धावितीर्णार्थः कान्ताकोपाद्विवाहकृत्। व्यक्तदोषप्रियासक्तः पश्चात्तापमुपैत्यलम्॥419॥ लम्पट लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा में धन फूंकने वाला, स्व परिणिता पर कोपकर अन्य का इच्छुक, प्रकट-दोष प्रिया में आसक्त पुरुष कालान्तर में पश्चाताप ही करते हैं। वैरी वेश्याभुजङ्गेषु वारितार्थी प्रियाभिया। स्त्रीरन्ता दुर्लभैश्चाथैीयते सर्वसम्पदा॥420॥ वेश्या के जार के साथ वैर करने वाले, स्त्री के भय से याचकों को दान से मना करने वाले च दुर्लभ अर्थ देकर स्त्री-भोगने करने वाले की सर्वसम्पदा नष्ट हो जाती है। निर्बुद्धिः कार्यसिद्धयर्थी दुःखी सुखमनोरथः। ऋणेन स्थावरक्रेता मूर्खाणामादिमास्त्रयः॥421॥ बुद्धि के अभाव में प्रयोजन सिद्ध करना चाहे, दुःख होते हुए भी सुख का मनोराज्य करे और माथे पर ऋण ओढ़कर घर-बार खरीदे तो ऐसे लोगों को मूल् के शिरोमणि समझने चाहिए। सदैन्योऽर्थे सुतायत्ते भार्यायत्ते वनीपकः। प्रदायानुशयं धत्ते तस्मादन्यो हि कोऽधमाः॥422॥ पुत्र को धन-सम्पदा सौंपकर स्वयं दीनता देखने वाला, स्त्री को धन देकर स्वयं भीख मांगने वाला और दान देकर पछताने वाला- ऐसे लोगों से बढ़कर दूसरा कौन अधम होगा?

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