Book Title: Vivek Vilas
Author(s): Shreekrushna
Publisher: Aaryavart  Sanskruti Samsthan

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Page 258
________________ 256 : विवेकविलास दानशीलतपोभावैर्भदौर्भिन्नः स दृश्यते। कार्यस्ततः स एवहे मुक्तेयः कारणं परम्॥13॥ उक्त धर्म के दान, शील, तपस्या और भावना- ये चार प्रकार हैं और इनसे मुक्ति होती है। अतएव विवेकी पुरुषों को धर्म ही आचरण करना चाहिए। श्रेष्ठो मे धर्म इत्युच्चैबूते कः कोऽत्र नोद्धतः। ... भेदोन ज्ञायते तस्य दूरस्थैराम्रनिम्बवत॥14॥ ऐसा कौन व्यक्ति है जो कि 'मेरा धर्म श्रेष्ठ है' ऐसा नहीं कहता? किन्तु जिस प्रकार दूर खड़े मनुष्य से आम अथवा नीम का भेद नहीं जाना जा सकता, वैसे ही धर्म का भेद उस मनुष्य से नहीं जाना जा सकता। मायाहङ्कारलजाभिः प्रत्युपक्रिययाथवा। यत्किञ्चिद्दीयते दानं न तद्धर्मस्य साधकम्॥15॥ जो दान कपटपूर्वक, अहङ्कार से या उपकार का बदला चुकाने के प्रयोजन से दिया जाता है, उससे धर्म की सिद्धि नहीं होती है अर्थात् दान परोपकार की भावना से ही होना चाहिए। असद्भयोऽपि च यद्दानं तन्न श्रेयस्करं विदुः। दुग्धपानं भुजङ्गानां जायते विषवृद्धये॥16॥ कुपात्र को दान देना भी कल्याणकारक नहीं है क्योंकि साँप को दूध पिलाने से केवल विष की ही बढ़ोत्तरी होती है। प्रसिद्धिर्जायते धर्मान्न दानाद्यं प्रसिद्धये। कैश्चिद्वितीर्यते दानं तज्ज्ञेयं व्यसनं बुधैः ।। 17॥ धर्म से ही प्रसिद्धि होती है। केवल दान से ही प्रसिद्धि नहीं होती। कई लोग केवल प्रसिद्धि के अर्थ से दान देते हैं, इसे उनका एक व्यसन ही जानना चाहिए। यज्ज्ञानाभययोर्यच्च धर्मोषष्टम्भवस्तुनः। .यच्चानुकम्पया दानं तदेव श्रेयसे भवेत्॥18॥ ज्ञान दान, अभय दान, धर्मोपकरण वस्तु का दान और अनुकम्पा दान- इन चारों ही दानों से कल्याण होता है। स विवेकधुराद्धारधौरयो यः स्वमानसे। विरक्तहृदयो वेत्ति ललनां शृखलोपमाम्॥19॥ . हृदय में वैराग्य होने से जो व्यक्ति स्त्री को बान्धने वाली बेडी के समान स्वीकारता हो, उस पुरुष को विवेकवान समझना चाहिए।

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