Book Title: Vivek Vilas
Author(s): Shreekrushna
Publisher: Aaryavart  Sanskruti Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 239
________________ नाशम्बलश्चलेन्मार्गे भृशं सुप्यान्नवासके । 'सहायानां च विश्वासं विदधीत न धीधनः ॥ 368 ॥ बुद्धिमान् को अल्पाहार किए बिना रास्ते नहीं चलना चाहिए। जहाँ विश्राम किया हो, वहाँ अति निद्रा नहीं ले और जो (अपराचित) सहयात्री हो उनका विश्वास नहीं करना चाहिए। अन्यदप्याह अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लास: : 237 ――― महिषाणां खरोष्ट्राणां धनूनां चाधिरोहणम् । स्वेदस्पृशापि नो कार्यमिच्छता श्रियमात्मनः ॥ 369 ॥ अपने लिए लक्ष्मी की इच्छा करने वाले पुरुष को थकावट लगे तौ भी भैंसा, गधे, ऊँट और गाय पर नहीं बैठना चाहिए। गजात्करसहस्त्रेण शकटात्पञ्चभिः करैः । शृङ्गिणोऽश्वाच्च गन्तव्यं दूरणं दशभिः करै ॥ 370 ॥ रास्ते जाते समय हाथी से हजार हाथ, शकट- गाड़ी से पाँच हाथ और सींगवाले जानवर और घोड़े से दस हाथ दूर चलना चाहिए। न जीर्णां नावमारोहेनद्यामेको विशेन्नहि । अन्यदप्याह न चातुच्छमतिर्गच्छेत्सोदर्येण समं पथि ॥ 371 ॥ बुद्धिमान् को कभी पुरानी नौका पर नहीं चढ़ना चाहिए, नदी में एकाएक नहीं उतरना और सहोदर के साथ रास्ते में नहीं जाना चाहिए। * न जलस्थलदुर्गाणि विकटामटवीं न च । न चागाधानि तोयानि विनोपायं विलङ्घयेत् ॥ 372 ॥ जलदुर्ग या स्थलदुर्ग, विकट अरण्य और गहरा जल कभी किसी को बिना साधन के नहीं लांघनी चाहिए । क्रूरैरासक्षकैः कर्णेजपैः कारुजनैस्तथा। कुमित्रैश्च समं गोष्ठीं चर्यां चाकालिकीं त्यजेत् ॥ 373 ॥ क्रूर, राक्षस, चुगलखोर, कारु- कर्मन्न लोग और कुमित्र के साथ असमय बातचीत और घूमना-फिरना वर्जित समझना चाहिए । चाणक्य का मत है कि बैलगाड़ी से पाँच हाथ, घोड़े से दस हाथ, हाथी से सौ हाथ और बैल से दस हाथ दूरी रखनी चाहिए किन्तु यदि कोई दुष्टव्यक्ति हो तो वह स्थान ही छोड़ देना चाहिए— शकटं पञ्चहस्तेन दशस्तेन वाजिनाम् । हस्ती शतहस्तेन देशत्यागेन दुर्जनम् ॥ (चाणक्यनीति 7, 7)

Loading...

Page Navigation
1 ... 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292