Book Title: Vivek Vilas
Author(s): Shreekrushna
Publisher: Aaryavart  Sanskruti Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 230
________________ 228 : विवेकविलास सत्य वचन, मधुर, सीधा व दैन्य रहित सार्थक वचन जो कि लोगों का हृदय आकर्षित करें, बोलना चाहिए। उदारं विकथोन्मुक्तं गम्मीरमुचितं स्थिरम् । अपशब्दोज्झितं लोकमर्मास्पर्शि सदा वदेत् ॥ 314 ॥ इसी प्रकार उदार, विकथा रहित, गम्भीर, उचित, स्थिर, अनर्गल प्रलाप रहित और किसी के मर्म को स्पर्श नहीं करे- सदा ऐसा ही कथन कहना चाहिए । सम्बद्धं शुद्धसंस्कारं सत्यानृतमनाहतम् । स्पष्टार्थ मार्दवोपेत महसंश्च वदेद्वचः ॥ 315 ॥ ज्ञानी को सम्बन्धों पर विचार कर, व्याकरण के नियमानुसार शुद्ध, किसी प्रकार की आपत्ति न आए और स्पष्टार्थ प्रकट हो- ऐसा कोमल वचन व्यवहार में बिना हंसे ही कहना चाहिए। प्रस्तावेऽपि कुलीनानां हसनं स्फुरदोष्ठकम् । अट्टहासोऽतिहासश्च सर्वथानुचितः पुनः ॥ 316 ॥ सम्भ्रान्त लोगों का हंसना इतना ही हो कि हास्यावसर पर केवल ओठ चौड़े हो जाए किन्तु मर्यादा का उल्लङ्घन कर अकारण अट्टहास करना अनुचित हो सकता है। आत्मश्लाघा श्रवणान्नगर्वन्निषेधं - न गर्वः सर्वथा कार्यो भट्टादीनां प्रशंसया । व्युत्पन्नश्लाघया कार्यः स्वगुणानां तु निश्चयः ॥ 317 ॥ समझदार व्यक्ति को कभी याचकों के मुँह से अपनी प्रशंसा सुनकर गर्व से चूर नहीं हो जाना चाहिए अपितु यदि पण्डितों ने प्रशंसा की हो तो अपने गुणों का निश्चय करना उचित है । कस्यापि चाग्रतौ नैव प्रकाश्यः स्वगुणः स्वयम् । अतुच्छत्वेन तुच्छोऽपि वाच्यः परगुणः पुनः ॥ 318॥ इसी प्रकार ज्ञानी को किसी के सामने चलकर अपने गुणों को प्रकट नहीं करना चाहिए और दूसरे के गुण स्वल्प भी हों तो बढ़ाकर उनकी प्रशंसा करनी चाहिए । अन्यदप्याह - अवधार्या विशेषोक्तिः परवाक्येषु कोविदैः । नीचेन स्वं प्रति प्रोक्तं यत्तन्नानुवदेत्सुधी ॥ 319 ॥ ज्ञानी को दूसरों के वचनों का गूढ़ अभिप्राय ध्यानपूर्वक समझना चाहिए

Loading...

Page Navigation
1 ... 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292