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204 : विवेकविलास
दूतोक्तवर्णसङ्ख्याको द्विगुणो भज्यते त्रिभिः। यद्येकः शेषतां याति तच्छुभं नान्यथा पुनः॥ 171॥
दूत के मुँह से जो शब्द निकले हों, उनके दुगुने करके लब्ध संख्या को 3 से भाजित करे, यदि शेष एक रहे तो शुभ जाने, अन्यथा नहीं।
दूते दिगाश्रिते जीवतयाहिदष्टो विदिक्षु न।
प्रश्नोऽप्यन्तर्वहे वायौ सति दूतेन चेत्कृतः॥ 172॥ .. यदि दूत दिशा में खड़ा हो तो दंश पीड़ित व्यक्ति जीवित रहता है और इसी प्रकार नासिका द्वार से भीतर श्वास लेते समय वह प्रश्न करे और विदिशा में खड़ा हो तो नहीं जीयेगा, ऐसा अनुमित करना चाहिए। ' प्रश्नं कृत्वा मुखं दूतो धत्ते स्वं मीलितं यदि।
तदा दष्टादरो मुक्तो विपर्यासे मृतस्तु सः॥ 173॥ .यदि दूत प्रश्न करने के उपरान्त अपना मुँह बन्द कर लें तो दंश लगे व्यक्ति का आदर करना योग्य है और यदि मुँह खुला ही रखें तो वह मृत्यु को प्राप्त होता है।
दूतस्य वदनं रात्रौ यदि सम्यग्न दृश्यते। तदा स्वस्य मुखे ज्ञेयं मन्त्रिणा मीलनादिकम्॥ 174॥
रात्रि का समय होने के कारण यदि दूत का मुँह ठीक प्रकार से दिखाई न तो .. मान्त्रिक पुरुष को मुँह का बन्द होना प्रमुख चिह्न अपने मुँह से जानना चाहिए। दूत विचारोपरान्त मर्मविचारः
कण्ठे वक्षस्थले लिङ्गे मस्तके चिबुके गुदे। नासापुटे भ्रुवोर्मध्ये नाभावोष्ठे स्तनद्वये॥ 175॥ पाणिपादतले शङ्के स्कन्धे कर्णेऽलिके दृशोः। . केशान्तकक्षयोर्दष्टो दृष्टोऽन्तकपुरीजनैः ॥ 176॥
(अब देश के विभिन्न स्थानों के विषय में कहा जा रहा है) यदि 1. कण्ठ, 2. छाती, 3. लिङ्ग, 4. मस्तक, 5. दाढ़ी, 6. गुदा, 7. नाक, 8. दोनों भौंहों के मध्य, 9. नाभि, 10. ओष्ठ, 11. दोनों स्तन, 12. हाथ एवं पाँव के तल, 13. आँख का कान का निकटवर्ती भाग, 14. कन्धा, 15. कान, 16. कपाल, 17. दोनों आँखें, 18. केशान्त और 19. कांख- इन मर्म स्थानों पर जिस मनुष्य के दंश लगे तो उसकी मृत्यु होती है। अथ दष्टविचारः
* दूत के इसी प्रकार के लक्षणों का वर्णन अग्निपुराण (अध्याय 294, 25-41) में हुआ है।