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214 : विवेकविलास
(रात्रि और दिन का मान लगभग तीस-तीस घटी का होता है, इस मान के अनुसार निर्मित कालचक्र में ) शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक अनुक्रम से चन्द्रमा की कलाओं की कायागत स्थिति जाननी चाहिए। क्रम से प्रतिपदा को पादाङ्गुष्ठ, द्वितीया को पैर से ऊपर, तृतीया को गुल्फ, चतुर्थी को जानु, पञ्चमी को लिङ्ग, षष्ठी को नाभि, सप्तमी को हृदय, अष्टमी को स्तन, नवमी को कण्ठ, दशमी को नासिका, एकादशी को नेत्र, द्वादशी को कान, त्रयोदशी को भौंह, चतुर्दशी को शङ्ख अर्थात् कनपटी और पूर्णिमा को मस्तक पर चन्द्रमा की अमृत कला का निवास होता है। इसी प्रकार कृष्णपक्ष में प्रतिपदा में से अमावस्या तक उलटे क्रम से अर्थात् प्रतिपदा के दिन मस्तक पर द्वितीया के दिन शङ्ख में - इस तरह अमृत - कला रहती है।* सुधाकला स्मरो जीवस्त्रयाणामेकवासिता ।
पुंसो दक्षिणभागे स्याद्वामभागे तु योषितः ॥ 235 ॥
पुरुष की काया में दाहिने और स्त्री के अङ्ग के बायें अमृत की कला, काम और जीव- ये तीनों एकमेव होकर निवास करते हैं ।
सुधास्थानाद्विषस्थानं सप्तमं ज्ञेयमन्वहम् ।
सुधाविषस्थामर्दो विषघ्नो विषवृद्धिकृत् ॥ 236 ॥
अमृत का जो स्थान हो उससे सुधा का स्थान निरन्तर सातवाँ माना गया है। अमृतस्थल पर मर्दन करने से अमृत और विषस्थल पर मर्दन करने से विष की अभिवृद्धि होती है ।
स्त्रियो ऽप्यवश्यं वश्याः स्युः सुधास्थानविमर्दनात् । स्पृष्टाविशेषाद्वश्याय गुह्यप्राप्ता सुधाकला ॥ 237 ॥
अमृतस्थल मर्दन करने से स्त्रियाँ भी अवश्य वशीभूत होती हैं । विशेषरूप से गुह्यस्थल पर अमृत कला विद्यमान हो तो उसे मर्दन करने पर स्त्रियाँ शीघ्र वशीभूत होती हैं (जैसी कि वात्स्यायन, कोक्काक, कुम्भा" आदि की मान्यता भी है)।
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उक्त श्लोक गरुडपुराण के मत से मिलते हैं- पादाङ्गष्ठे पादपृष्ठे गुल्फे जानुनि लिङ्गके । नाभौ हृदि स्तनपुटे कण्ठे नासापुटेऽक्षिणि ॥ कर्णयोश्च भ्रुवोः शङ्खे मस्तके प्रतिपत्क्रमात् ॥ तिष्ठेच्चन्द्रश्च जीवेन्न पुंसो दक्षिणभागके । कायस्य वामभागे तु स्त्रिया वायुवहात्करात्। अमवत्त्वत्कृतो मोहो निर्वत्तेत च मर्दनात् ॥ (गरुड. 19, 10-11 )
* महाराणा कुम्भा का मत है सामान्यतया स्त्रियों के समस्त अङ्गों में चन्द्रकलामय रूप से कामदेव विद्यमान होता है। जिस-जिस स्थान पर चन्द्रमा की कला या तिथियों के अनुसार कामदेव विराजित होता है, उसके बारे में यहाँ कहा जा रहा है। शुक्लपक्ष में प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक प्रत्येक तिथि को स्त्री के अङ्गुष्ठ, से लेकर चरण, गुल्फ,, जानु या घुटना, जङ्घा प्रदेश,, नाभि, वक्षस्थल, स्तन, कक्ष या बगल, कण्ठ कन्दल, अधर,,, कपोल,2, नेत्र, भाल, मस्तक, तक कामदेव विद्यमान रहता है अर्थात् काम की विद्यमानता आरोह क्रम से इन अङ्गों में रहती है। स्त्रियों में उक्त स्थिति वामाङ्ग क्रम से वाम नेत्रादि में यथाक्रम रहती है जबकि कृष्णपक्ष में प्रतिपदा से अमावस्