________________
अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लास: : 203 आया हुआ हो, कोण दिशा छोड़ कर पूर्वादि चार दिशा में खड़ा हुआ, रोगी की जाति का धर्म का दूत यदि वैद्य अथवा गारुड़ी विद्या विशारद के यहाँ आया हुआ हो तो विष उतर जाएगा, ऐसा पूर्वानुमान करना चाहिए।
विषमः शस्यते दूतः स्त्रीणां तु स्त्री नरों नृणाम्। एवं सर्वेषु कार्येषु वर्जनीयो विषर्ययः॥ 165॥
दूत को देखकर कि वे विषम संख्या में (एक, तीन, पांच आदि) अथवा स्त्री की ओर से दूतिका और पुरुष ओर से पुरुष दूत आए तो श्रेष्ठ जानना चाहिए। सब कार्यों में इसके विपरीत हो तो वर्जित कहना चाहिए।
दष्टस्य नाम प्रथमं गृहंस्तदनु मन्त्रिणः।
वक्ति दूतो यमाहूतो दष्टोऽयंमुच्यतामिति॥166॥ . दूत विष पीड़ित मनुष्य का नामोच्चारण यदि पहले करे और बाद में मान्त्रिक का नाम ले तो मान्त्रिक को यह जानना चाहिए कि दूत 'विष पीडित मनुष्य के लिए • यम का आमन्त्रण बनकर आया है अतः इसे तुम छोड़ो' ऐसा ही मुझे कहता है। विष पीड़ित मनुष्य जीने का नहीं, ऐसा उस मान्त्रिक को अनुमान करना चाहिए।
दूतस्य यदि पादः स्यादक्षिणोऽग्रस्थितस्तदा। पुमान्दष्टोऽथ वामे तु स्त्री दष्टेत्यपि निश्चयः॥ 167॥ .
मान्त्रिक के गृह में जाते समय यदि दूत का दाहिना पाँव आगे हो तो विष से पीड़ित होने वाला पुरुष होगा और बायाँ पाँव आगे हो तो स्त्री- ऐसा निश्चय करना
चाहिए।
ज्ञानिनोऽग्रे स्थितो दूतो यदङ्गं किमपि स्पृशेत्। तस्मिन्नङ्गेऽस्ति दंशाऽपि ज्ञानिना ज्ञेयमित्यपि॥ 168॥
मान्त्रिक के आगे खड़ा दूत अपने शरीर के जिस भाग को स्पर्श करे, उस भाग पर सर्पादि का दंश हुआ है- ऐसा अनुमान कर लेना चाहिए।
अग्रतःस्थे यदा दूते वामा वहति नासिका। सुखाशिका तदादेश्या दष्टस्यागदकारिणी॥ 169॥
जब दूत सम्मुख खड़ा हो और बायीं नासिका का स्वर बहता रहे तो 'विष से पीड़ित मनुष्य की पीड़ा मिट जाएगी' ऐसा विश्वास उस दूत को देना चाहिए।
वामायामेव नासायां यदि वायुप्रवेशने। दूतः समागतः शस्यस्तदा नैवान्यथा पुनः॥ 170॥ .
जब वायु प्रवाह बायें नाक में होता हो तो आए हुए दूत को श्रेष्ठ जानना चाहिए और विपरीत प्रवाह हो तो नहीं।