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210 : विवेकविलास
. यदि चतुदर्शी के दिन शनिवार तथा आर्द्रा नक्षत्र हो तो छह दिन तक विष की मर्यादा होती है। इस प्रकार कतिपय लोगों ने अपरान्त योग तिथि, वार और नक्षत्र के योग से माना है। प्रकारान्तरमाह -
यामार्धमाद्यमन्त्यं च धुवारस्याह्नि निश्यपि। .. तत्तत्षष्ठस्य शेष स्यानिशि तत्पश्चमस्य तु॥ 211॥
(उक्त विषय में अब अन्य मत कहा जा रहा है) प्रहर का प्रथम व अन्तिम अर्द्ध भाग दिन सम्बन्धी वार के दिन व रात्रि को भी जानना चाहिए। दिन को उसका षष्ठमांश और रात्रि को पञ्चमांश शेष होता है।"
सूर्यादौ षड्विवर्ते आशुबुसौशगुमं दिने। विवर्ते पश्चमे आबृसोशुमंशबु निश्यपि॥ 212॥
कालगति में सूर्यादि के लिए छठवें विवर्ते (परिवर्तित क्रम) दिन में रवि, शुक्र, बुध, चन्द्र, शनि, गुरु और मङ्गल जानना चाहिए और रात्रि को पाँचवें विवर्ते रवि, गुरु, चन्द्र, शुक्र, मङ्गल और शनि के लिए जाने।
नागार्धयामकाञ्चैते तेषु कालो भवेच्छनौ। - - अपरान्तो भवेज्जीवो ज्ञेयं युक्त्यानया त्रयम्॥ 213॥
ये विवर्ते नाग के अर्द्ध प्रहर जानने चाहिए। इसमें शनि के प्रसङ्ग में काल, अपरान्त और जीव इस प्रकार तीन बातें जाननी चाहिए।
कालदष्टोऽपि सूर्यस्य दिनेऽष्टाविंशतिं घटीः। जीवत्यतो मृतो नो चेदलितं कालमर्म तत्॥214॥ रविवार के दिन यदि काल-सर्प का दंश हो तो भी मनुष्य 28 घड़ी तक
इस प्रकार का वर्णन अग्निपुराण और भविष्यपुराण में भी हुआ है। आयुर्वेदिक ग्रन्थों में गारुडमन्त्राधिकार,
भावप्रकाश, सुश्रुतादि में सर्पविष के विषय में विविध मत हैं। **गरुडपुराण में प्रकारान्तर से कहा गया है कि दिन के प्रथम भाग के पूर्व अर्ध याम का भोग सूर्य करता है। उस दिवाकर-भोग के बाद गणनाक्रम में जो ग्रह आते हैं, उनके द्वारा यथाक्रम शेष यामों का भोग किया जाता है। इस कालगति में हर दिन में छह परिवर्तनों के साथ अन्य शेष ग्रहों का भोग माना गया है। काल चक्र के आधार पर रात्रिकाल में शेषनाग 'सूर्य', वासुकि 'चन्द्र', तक्षक 'मङ्गल', कर्कोटक 'बुध', पद्म 'गुरु', महापद्म 'शुक्र', शङ्ख 'शनि' और कुलिक नाग 'राहु' को माना गया है-पूर्व दिनपतिभुण्क्ते अर्द्धयामं ततोऽपरे। शेषा ग्रहाः प्रतिदिनं षट्संख्यापरिवर्तनैः ।। नागभोगः क्रमाज्ज्ञेयो रात्रौ बाणविवर्त्तनैः ॥ शेषोऽर्क: फणिपश्चचन्द्रस्तक्षको भौम ईरितः॥ कर्कोटोज्ञो गुरुः पद्मो महापद्मश्च भार्गवः । शङ्खः शनैश्चरो राहुः कुलिकश्चाहयो ग्रहाः ॥ रात्रौ दिवा सुरगुरोर्भागे स्यादमरान्तकः। पङ्गोः कालो दिवा राहुः कुलिकेन सह स्थितः । यामार्द्धार्द्धसन्धिसंस्थः वेलां कालवतीञ्चरेत्। (गरुड. 19. 38)