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अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लासः : 195
सामान्यतया चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, अष्टमी, मृत्यु के कारण लगे सूतक और चन्द्र-सूर्य के ग्रहण के समय अध्ययन नहीं करना चाहिए । तथोल्कापातनिर्घात भूमि कम्पेषु गर्जिते ।
पञ्चत्वं च प्रयातानां बन्धूना प्रेतकर्मणि ॥ 126 अकालविद्युति श्रेष्टं मलिनामध्यसंनिधौ । श्मशाने शपगन्धे वा नाधीतात्मनि चाशुचौ ॥ 127 ॥
इसी प्रकार उल्कापात होने पर, अँधड़, प्रभञ्जन चलने पर, भूकम्प, मेघ गर्जन, अपने सम्बन्धियों में किसी कीं मृत्यु के प्रेतकर्म चलते हों तब, असमय (आर्द्रा नक्षत्र से पूर्व और हस्त नक्षत्र के बाद) बिजली चमकती हों, आचार भ्रष्ट, मलिन और अपवित्र लोगों के पास, श्मशान में जहाँ कि चिता की दुर्गन्ध उठती हों और जब अपना शरीर अपवित्र हो तब अध्ययन नहीं करना चाहिए।
अथाध्ययनविधिं -
नात्युच्चैर्नातिनीचैश्च नानेकाग्रमनास्तथा ।
न विच्छिन्नपदं चैव नास्पष्टं पाठकः पठेत् ॥ 128 ॥
छात्र को कभी बहुत शोर करते हुए, बहुत धीरे, एकाग्रता भङ्गकर, पदपरिच्छेद बीच में टूट जाए और अस्पष्ट उच्चारणपूर्वक अध्ययन नहीं करना चाहिए। धन्यानन्यविद्यार्थीलक्षणं -
शास्त्रानुरक्तिरारोग्यं विनयोद्यमबुद्धयः ।
अन्तराः पञ्च विज्ञेया धन्यानां पाठहेतवः ॥ 129॥
पठन-पाठन के पाँच अन्तरङ्ग कारण हैं- 1. शास्त्र - विषय पर पूर्ण अनुराग, 2. निरोगता, 3. विनयभाव, 4. उद्यमशीलता और 5. बुद्धिमता । इनका सुयोग जिनको
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आचार्य गर्ग का मत है कि उत्तरायण, उत्तर बल, गुरु-सूर्य-चन्द्र के बलशाली होने पर यज्ञोपवीत की भाँति अनध्याय, प्रदोषादि का चिन्तनकर ज्ञान मार्गारूढ होना चाहिए— सौम्यायने सौम्यबले
सूर्येन्दुले । अनध्यायप्रदोषाद्यं चिन्तयेद्वतबन्धवत् ॥ ( बृहद्दैवज्ञरञ्जनम् 68, 7 पर उद्धृत)
• परम्परानुसार सभी महीनों में 14, 15, 30 व प्रतिपदा; अष्टकाओं में; सङ्क्रान्ति; चैत्र एवं वैशाख के शुक्लपक्ष की तृतीया, ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष की द्वितीया, माघ में शुक्ल पक्ष की द्वादशी और फाल्गुन
में
कृष्ण पक्ष की द्वितीया को अनध्याय की तिथियाँ कहा गया है। (इनमें उपनयन नहीं होता है) । इसी प्रकार उत्पात (दिव्य, अन्तरिक्ष एवं भौम) होने पर भी अध्ययन, व्रतबन्ध नहीं करना चाहिए। यदि बटुक की माता गर्भिणी हो तो भी निषिद्ध जानना चाहिए। इसी प्रकार शनिवार, रिक्तातिथि (4, 9, 14), सप्तमी, त्रयोदशी और प्रदोषकाल भी नेष्ट हैं। इसके अतिरिक्त जिस दिन अनध्याय हो, उसके पूर्व पर एक-एक दिवस, षष्ठी, मङ्गलवार भी त्याज्य कहे गए हैं किन्तु यदि चैत्र मास में
का सूर्य हो जाए तो प्रशस्त जानना चाहिए— भूतात्तिस्त्रोष्टमी सङ्क्रम मधुयुगल प्राक्तृतीयाद्वितीया ज्येष्ठेमाघेच्युतोन्त्यासितकतिथिरनध्याय औत्पातिकश्च । गुर्विण्यम्बार्किरिक्तेमदनरवितिथी, सप्रदोषा च नेष्टान्येनध्यायादुभौ षष्ठ्ट्यसृगथ झषगोर्कोत्रचैत्रेऽति शस्तः ॥ ( मुहूर्ततत्त्वं 6,14)