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196 : विवेकविलास
मिलता हो वे विद्यार्थी धन्य हैं।
सहाया भोजनं वास आचार्यः पुस्तकं तथा ।
अमी बाह्या अपि ज्ञेयाः पञ्च पाण्डित्यहेतवः ॥ 130 ॥
इसी प्रकार सामूहिक अध्ययन करने वाले, भोजन, वस्त्र, गुरु और पुस्तकये पढ़ने के पाँच बाह्य कारण कहे गए हैं।
इत्यमनन्तर अध्ययनयोग्यभाषायां
संस्कृते प्राकृते चैव शौरसेने च मागधे ।
पैशाचकेऽपभ्रंशे च लक्ष्यं लक्षणमादरात् ॥ 131॥
(भाषा विज्ञान के) विद्यार्थी को 1. संस्कृत, 2. प्राकृत, 3. शौरसेनी, 4. मागधी, 5. पैशाची और 6. अपभ्रंश - इन छह भाषाओं के लक्षणों को जानना चाहिए ।
शास्त्राभ्यासेन किं न करिष्यति
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कवित्वहेतुः साहित्यं तर्कों वक्तृत्वकारणम् । बुद्धिवृद्धिकरी नीतिस्तस्मादभ्यस्यते बुधैः ॥ 132 ॥
विद्यार्थी अपने अध्ययन से क्या नहीं कर सकते ? वह साहित्यशास्त्र के अभ्यास से काव्य रचना कर सकते हैं; तर्कशास्त्र के अभ्यास से अच्छा वक्ता होता है; नीतिशास्त्र के अभास से बुद्धि का विकास होता है । एतदर्थ सुज्ञपुरुषों के शास्त्रों का अच्छा अभ्यास करना चाहिए ।
गणितशास्त्रानुस्मरणं -
पाटी - गोलक - चक्राणां तथैव ग्रह-बीजयोः ।
गणितं सर्वशास्त्रोघ वयापकं पठ्यतां सदा ॥ 133 ॥
(गणित के विद्यार्थियों को) पाटीगणित, गोलगणित, चक्रगणित, ग्रहगणित, और बीजगणित - सर्वशास्त्रमयी इन पाँच गणितों का निरन्तर पठन होना चाहिए।* धर्मशास्त्रवचनप्रशंसाह
तत्कालीन ऐसे गणितीय ग्रन्थों में वराहमिहिर कृत पञ्चसिद्धान्तिका, आर्यभट कृत आर्यभटीय, जैन ग्रन्थों में सूरियपन्नति, समवायाङ्ग, तिलोयपण्णत्ति, मयकृत सूर्यसिद्धान्त (पूर्वा-पर), लल्लाचार्यकृत पाटीगणित, शिष्यधीवृद्धिदम्, श्रीपति कृत पाटीगणित, सिद्धान्तशेखर, धीकोटिदकरण, ब्रह्मगुप्तकृत ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, खण्डखाद्य, भास्कराचार्यकृत सिद्धान्तशिरोमणि और उसके चार भाग लीलावती, बीजगणित, ग्रहगणिताध्याय व गोलाध्याय, करणकुतूहल, करणकेसरी, ग्रहगणित, बीजोपयन, ज्ञानभास्कर, सूर्यसिद्धान्तव्याख्या, भास्करदीक्षितीय, भोजदेवकृत राजमृगाङ्क और नारदपुराण के पूर्वभाग का गणिताध्याय इत्यादि प्रमुख रूप से व्यवहत रहे हैं।