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.. अथ दीपशयनवरवधूलक्षणजातकादीनां वर्णनं नाम पञ्चमोल्लासः : 137 से विनम्र हो जाए; विनयपूर्वक पति की सेवा में तत्परता दिखाए; पति पर कपट रहित हृदय रखें; सास आदि बड़े परिवार जनों के प्रति भक्तिभाव रखे; ननदों के सम्मुख नम्रता को प्रदर्शित करे; पति के भाइयों से स्नेहपूर्ण व्यवहार करे; अपनी सौत हो तो उस पर भी प्रीति रखे; दास-दासी पर दया करे; पति की मित्र मण्डली के साथ नम्रता से चतुर वचन बोले और पति के शत्रुओं के साथ वैर रखे-ऐसी गृहस्थ स्त्री को साक्षात् लक्ष्मी जाननी चाहिए। निषिद्धकार्याणि -
निषिद्धं हि कुलस्त्रीणां गृहद्वारनिषेवणम्। वीक्षणं नाटकादीनां गवाक्षावस्थितिस्तथा ॥ 174॥
कुलीन स्त्रियों को घर के द्वार पर नहीं बैठे रहना चाहिए। नाटक आदि न देखें और गवाक्षों, अवलोकन में स्थित होकर बाहर देर तक दृष्टिपात नहीं करना चाहिए।
अङ्गप्रकटनं क्रीडा कौतुकं जल्पनं परैः। कार्मणं शीघ्रयानं च कुलस्त्रीणां न युज्यते॥ 175॥
सम्भ्रान्त परिवारों की स्त्रियों को वस्त्र से ढकने के योग्य अङ्ग का प्रदर्शन करना, क्रीड़ा-कौतुक करना, परपुरुष के साथ वार्तालाप, काम में रुचि न लेना और गमन में अतिशीघ्रता दर्शाना उचित नहीं है।
अङ्गप्रक्षालनाभ्यङ्ग मर्दनोद्वर्तनादिकम्। कदाचित् पुरुषैनैव कारयेयुः कुलस्त्रियः॥ 176॥
कभी सम्भ्रान्त स्त्रियों को अपने स्नान में पुरुष की सहायता नहीं लेनी चाहिए। इसी प्रकार तैलाभ्यङ्ग, उबटन, मसाज आदि भी पुरुषों से नहीं करवाना चाहिए।
लिङ्गिन्या वेश्य दास्या स्वैरिण्या कारुकस्त्रिया। युज्यते नैव सम्पर्कः कदापि कुलयोषिताम्॥ 177॥
स्त्रियों को कभी योगिनी, वेश्या, दासी, कुलटा और कारु-कर्मन्नों (शिल्पियों) की महिलाओं से घनिष्ठ सम्पर्क नहीं रखना चाहिए।"
मङ्गलाय कियांस्तन्यालङ्कारो धार्य एव हि।... प्रवासे प्रेयसः स्थातुं युक्तं श्वश्वादि सन्निधौ॥ 178॥ यदि पति परदेश में हो तो पत्नी को सौभाग्यसूचक किञ्चित् अलङ्करणों
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* तुलनीय- चिरन्तिष्ठेन च द्वारे गच्छेनैव परालये। (शिवपुराण रुद्र. पार्वती. 54, 22) **तुलनीय- न रजक्या न बन्धक्या तथा लिङ्गिन्या न च । न च दुर्भगया क्वापि सखित्वं कारयेत्क्वचित्॥
(शिवपुराण तत्रैव 54, 36)