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184 : विवेकविलास
15 15
कान्त
___7.
मनोरम
-
सुमुख दुर्मुख
9.
10.
5 ।। ।।।। 555 । ।5।। Sisi ।।।। 55 ।। ।5 ।। 5 ।।।
___11. ___ 12.
सुपक्ष
पूर्वपश्चिमद्वार दक्षिणपश्चिमद्वार पूर्वयाम्यपश्चिमद्वार उत्तरद्वार पूर्वोत्तरद्वार दक्षिणोत्तरद्वार पूर्वयाम्योत्तरद्वार पश्चिमोत्तरद्वार पूर्वपश्चिमत्तरद्वार याम्यपश्चिमोत्तरमुख चतुर्मुख
13.
14.
धनद क्षयाख्य आक्रन्द विपुल विजयसंज्ञक
___15. ___16.
गृहे कक्षादीनां निवेशनाह
पूर्वस्यां श्रीगृहं कार्यमानेय्या तु महानसम्। शयनं दक्षिणस्यां च नैर्ऋत्यामायुधादिकम्॥83॥ भुजिक्रिया पश्चिमायां वायव्यां धान्यसङ्ग्रहः। उत्तरस्यां जलस्थानमीशान्यां देवतागृहम्॥84॥
अपने गृह में पूर्व दिशा में श्रीगृह (भाण्डागार), आग्नेय कोण में पाकशाला (रसोईघर), दक्षिण दिशा में शयनागार, नैऋत्य कोण में आयुधागार, पश्चिम दिशा में भोजन स्थल, वायव्य कोण में धान्य संग्रह स्थल और उत्तर दिशा में जल का स्थल और ईशान कोण में देवतागृह बनाना चाहिए। अपरं च -
गृहस्य दक्षिणे वह्नि तोयगोमयदीपभूः। वामे प्रत्यग्दिशो भुक्तिधान्यार्थारोहदेवभूः॥85॥
गृह के दक्षिण भाग में रसोई, पानी का स्थान और गोमय के कण्डे (वर्तमान में गैस) का और दीपक रखने का स्थान बनाना चाहिए। इसके बायीं ओर, पश्चिम दिशा की ओर भोजन करने का, धान्य व धन रखने का स्थान व आरोहण बनाना चाहिए। प्राक्दिशाज्ञानार्थ परामर्श - * मयमतम्, मानसार, समङ्गणसूत्रधार, अपराजिपृच्छा, राजवल्लभवास्तुशास्त्रादि में इन स्थानों को
लेकर किञ्चित भेद मिलता है किन्तु यह मत सर्वमान्य है कि जिस दिशा की जो प्रकृति हो, वह निर्मिति वहाँ बनाई जा सकती है।