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192 : विवेकविलास
गुरुः सोमश्च सौम्यश्च श्रेष्ठऽनिष्टौ कुजासितौ। विद्यारम्भे बुधैः प्रोक्तो मध्यमौ भृगुभास्करौ॥ 109॥
(अब शिष्य-बोधन के विषय में कहा जा रहा है) विद्यारम्भ कार्य में गुरुवार, सोमवार और बुधवार- ये तीन वार श्रेष्ठ हैं, शुक्रवार और रविवार मध्यम हैं तथा मङ्गलवार और शनिवार अधम जानने चाहिए। विद्यारम्भमुहूर्त -
पूर्वात्रयं श्रुतिद्वन्द्वं विद्यादौ मूलमश्विनी। हस्तः शतभिषक् स्वातिश्चित्रा च मृगपञ्चकम्॥ 110॥
विद्यारम्भ के लिए पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, श्रवण, धनिष्ठा, मूल, हस्त, शतभिषा, स्वाती, चित्रा, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य और आश्लेषा नक्षत्र प्रशस्त कहे गए हैं। । कलाचार्य-शिक्षकलक्षणं
अक्रुद्धः शास्त्रमर्मज्ञोऽनालस्यो व्यसनोज्झितः। हस्तसिद्धस्तथा वाग्मी कलाचार्यो मतः सताम्॥ 111॥
क्रोधरहित, शास्त्र का मर्मज्ञ, आलस्य और दुर्व्यसनों से दूर, हस्त लाघव में प्रसिद्धनामा और युक्ति से वचन बोलने वाला कलाचार्य सत्पुरुषों का मान्य है।"
पितृभ्यामीदृशस्यैव कलाचार्यस्य बालकः। वत्सरात्पञ्चमादूर्ध्वमर्पणीयः कृतोत्सवम्॥ 112॥
बच्चे को जब पाँचवाँ वर्ष लगे तब माता-पिता को चाहिए कि वे उत्सव आयोजित कर के उपर्युक्त गुण वाले कलाचार्य के हाथ में शिक्षणार्थ सौंपे। दुष्टचित्तगुरोर्न -
इष्टानामप्यपत्यानां वरं भवतु मूर्खता। नास्तिकाहुष्टचित्ताच्च विद्या विद्यागुरोर्न तु॥ 113॥ अपना प्रिय पुत्र भले ही मूर्ख रह जाएँ तो अच्छा है किन्तु उसे नास्तिक और
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* आचार्य श्रीपति का मत है कि हस्तादि तीन नक्षत्र, रेवती, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, मूल,
आश्लेषा, पूर्वाषाढ़ा, श्रवण, अश्विनी, जन्म से पांचवां वर्ष देखकर विद्यारंभ करवाने का निर्देश गर्गादि मुनियों ने किया है- हस्तात्रयं पञ्चकमिन्दुधिष्णान्मूलंनि पूर्वा श्रवणेश्विताषु। शिशोस्तथाबाण
मिते च वर्षे विद्यासमरम्भमुशन्ति गर्गाः ॥ (रत्नमाला 4, 38) **कलाविद् के लिए कहा गया है कि वह प्रवीण, स्फुर्तिवान, परिश्रमी, दीर्घदर्शी एवं शूर व्यक्ति होना
चाहिए- वास्तुविद्याविधानज्ञो लघुहस्तो जितश्रमः । दीर्घदर्शी च शूरश्च स्थपति परिकीर्तितः ॥ (मत्स्य. 215, 40, विष्णुधर्मोत्तर 2, 24, 39)