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190 : विवेकविलास त्याज्य प्रातिवेश्मिकतामाह -
मूर्खाधार्मिकपाखण्डिपतितस्तेनरोगिणाम्। कोधनान्त्यजहप्तानां गुरुतल्पगवैरिणाम्॥ 122॥ स्वामिवञ्चकलुब्धानामृषिस्त्रीबालघातिनाम्। इच्छन्नात्महितं धीमान् प्रातिवेश्मिकतां त्यजेत्॥ 103॥
स्व कल्याणकांक्षी को कभी मूर्ख, अधर्मी, पाखण्डी, महापाप से गिरा हुए, चोर-तस्कर, असाध्य रोगी, क्रोधी, चाण्डाल, अहङ्कारी, गुरु की स्त्री के साथ सम्भोग करने वाले, शत्रु, अपने स्वामी को ठगने वाले, लोभी सहित ऋषि, स्त्री और बालक की हत्या करने वाले के पड़ोस में कभी अपना निवास नहीं करना चाहिए। एषां दूरत्वे नियमः
दुःख देवकुलासन्ने गृहे हानिश्चतुष्पथे। धूर्तामात्यगृहाभ्याशे स्यातां सुतधनक्षयौ। 104॥
यदि अपना भवन देवालय के पास हो तो दुःख होता है; चौराहे के पास, चत्वर या हथाई के पास हो तो हानि होती है तथा धूर्त और-मन्त्री के आवास के समीपस्थ हो तो पुत्र व धन का नुकसान होता है। गृहसमीपे शुभाशुभवृक्षाः
खर्जूरी दाडिमी रम्भा कर्कन्धू/जपूरिका। उत्पद्यन्ते गृहे यत्र तनिकृन्तति मूलतः॥ 105॥ :
जिस भवन में खजूर, दाडिम, केला, बेर-करौंदा और बिजौरा नींबू उगे हुए हों, उस घर का समूल विनाश कहा जाता है।"
* सूत्रधार मण्डन का मत है कि गृह न तो देवालय, न धूर्तसेवित स्थान या चत्वरों के पास बनाना
चाहिए। ऐसा होने पर दुःख व शोक की प्राप्ति होती है। नास्तिक, नृप, आमात्य, चोर, पाखण्ड से जीवन यापन करने वालों, चत्वरों-चौराहों, अन्त्यजों, धूतों के निवास के समीप कभी गृह नहीं बनाना चाहिए, ऐसा निर्माण दुखदायी होता है-न देव धूर्त सेवित् चत्वराणां समीपतः। कारयेद्भवनं प्राज्ञो दुःखशोक फलं यतः॥ सुरवैरि-नृपाऽर्मत्यचौरपाखण्डि यापिनः । चत्वरान्त्यजधूर्तानां समीपे
दुःखदं गृहम् ॥ (वास्तुमण्डनं 7, 47-48 ) **यह श्लोक अपराजितपृच्छा में इस प्रकार आया है- खजूरी दाडिमी रम्भा कर्कन्धू बीजपूरिका।
यस्मिन् गृहे प्ररोहन्ति तद् गृहं नैव वर्द्धते ।। (अपराजित. 51, 38) यही अन्यत्र भी आया है-बदरी कदली चैव डाडिमी बीजपूरिका। प्ररोहन्ति गृहे यत्र तद् गृहं न प्ररोहति ॥' (वृक्षायुर्वेद 29, समराङ्गण. 48, 131) अपराजितपृच्छा में आया है कि बांसों के झुरमुट से पड़ने वाली छाया भवनों के लिए दुगुनी मध्य दूषिता कही गई है। पुनाग या सुपाड़ी के वृक्षों की छाया तिगुनी और दूध वाले वृक्षों की छाया चतुर्गुणी दूषिता है। अश्वत्थ वृक्ष की छाया वाली भूमि पाँच गुणी दूषित है। इसी तरह आँवले के पेड़ की छाया छह गुणी, पूर्ण वृक्ष की छाया वाली सात गुणी और शिवलिङ्ग की भवन पर पड़ने वाली