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. अथ ऋतुचर्या नाम षष्ठोल्लासः : 155. श्रूष्मग्रन्युञ्जीत मात्राया पानकानि च।। स्वं कृष्णागुरुकाश्मीर चन्दनैश्च विलेपयेत्॥5॥
इसमें कफ का नाश करने वाले पेय, शरबत आदि का यथेष्ट उपयोग किया जा सकता है और अपने शरीर पर मलयागिरि चन्दन, अगरु, काश्मीरी केशर का लेपन करना चाहिए।
पवनो दक्षिणश्चूत मञ्जरी मल्लिकास्त्रजः। ध्वनि ङ्गपिकानां च मधौ कस्योत्सवाय न॥6॥ ..
बसन्तऋतु में चलने वाली दक्षिण दिशा की पवन, आम की मञ्जरी, मल्लिकापुष्प की मालाएँ और भ्रमर और कोकिला के मधुर स्वर किसके मन को हर्ष उत्पन्न नहीं करते? अर्थात् सबका का ही मन हर्षित करती हैं। अथ ग्रीष्मचर्या -
ग्रीष्मे भुञ्जीत सुस्वादु शीतं स्निग्धं द्रवं लघु। यदत्र रसमुष्णांशुराकर्षत्यवनेरपि॥7॥
ग्रीष्म ऋतु में मधुर, शीतल, स्निग्ध, पतला और हल्का अन्न लेना चाहिए क्योंकि यह ऋतु सूर्य-भूमि के भी सब रसों को खींच लेती है॥7॥
पयः शाल्यादिकं सर्पिरथमस्तु सशर्करम्। अत्राश्रीयाद्रसालाश्च पानकानि हिमानी च॥8॥
इस ऋतु में भैंस का दूध, चावल आदि धान्य और घृत भक्षण करना चाहिए। दही अथवा छाछ पर आया हुआ पानी शक्कर डालकर पीना चाहिए और श्रीखण्ड आदि शीतल पेय उपयोग में लाने चाहिए।
पिबेज्योत्स्वाहतं तोयं पाटलागन्धबन्धुरम्। मध्याह्न कायमाने वा नयेद्धारागृहेऽथवा॥9॥
इस ऋतु में चन्द्रमा की किरणों से शीतल हुआ और पाटलापुष्प की सुगन्ध से मन को हरने वाला जल पीना चाहिए। दोपहर का समय वाटिका में निर्मित आवास या धारागृह, जलहौद के पास व्यतीत करना चाहिए।
वल्लभाङ्गलतास्पर्शात्तापश्चात्र प्रशाम्यति। व्यजनं सलिलार्द्र च हर्षोत्कर्षाय जायते॥10॥
ग्रीष्म में अपनी प्रिया के अङ्गरूप बेल को स्पर्श करने से ताप की शान्ति होती है और जल से भीगा हुआ व्यंजन या पङ्खा बहुत ही आराम-आनन्द देता है।
सौधोत्सङ्गे स्फुरद्वायौ मृगाङ्कद्युतिमण्डिते। चन्दनद्रवलिप्ताङ्गो गमयेद्यामिनी पुनः ।। 11॥