________________
168 : विवेकविलास है) नक्षत्रों के 'अग्निमण्डल' के अन्तर्गत विशाखा, भरणी, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाभाद्रपदा, मघा और कृतिका-ये सात नक्षत्र आते हैं।
चित्रा हस्तोऽश्विनी स्वातिर्मूगशीर्ष पुनर्वसुः। । उत्तरा फाल्गुनीत्येतद्वायव्यं मण्डलं विदुः॥ 26॥
द्वितीय 'वायुमण्डल' के अन्तर्गत चित्रा, हस्त, अश्विनी, स्वाती, मृगशीर्ष, पुनर्वसु और उत्तराफाल्गुनी- ये सात नक्षत्र कहे जाते हैं।
पूर्वाषाढोत्तराभाद्राश्रूषा मूलरेवती। शततारेति नक्षत्रैर्वारुर्ण मण्डलं भवेत्॥27॥
तृतीय वारुणमण्डल' के अन्तर्गत पूर्वाषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, आश्लेषा, आर्द्रा, मूल, रेवती और शतभिषा- ये सात नक्षत्र आते हैं। .
अनुराधाभिजिजयेष्ठोत्तराषाढा धनिष्ठिका। रोहिणी श्रवणोऽप्येभिक्षाहेन्द्रमण्डल॥28॥
चतुर्थ 'माहेन्द्रमण्डल' के अन्तर्गत अनुराधा, अभिजित्, ज्येष्ठा, उत्तराषाढ़ा, धनिष्ठा, रोहिणी और श्रवण- ये सात नक्षत्र आते हैं। ... मण्डलानुसारेणोत्पात फलपाककालं
मासैरष्टभिराग्नेये द्वाभ्यां वायव्यके पुनः। मासेन वारुणे सप्तरात्रान्माहेन्द्रके फलम्॥29॥
इन मण्डलों में होने वाले उत्पातों का फल क्रमशः आग्नेयमण्डल में 8 मास में, वारुणमण्डल में 2 मास में, वारुणमण्डल में 1 मास में और माहेन्द्रमण्डल में फल 7 रात्रि में सामने आता है।
-----------------
* मुहूर्ततत्त्वं में आया है कि भूकम्प जिस मण्डल में होते हैं, उस मण्डल के स्वभावानुसार ही द्रव्य,
प्राणी एवं देश प्रभावित होते हैं। 'वायव्यमण्डल' के अन्तर्गत मृगशिरा, अश्विनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती और पुनर्वसु ये सात नक्षत्र आते हैं और इनमें यदि भूकम्प (अन्योत्पात भी हो तो) मगध देश में राजा, जल, धान्य की क्षति करने वाला होता है। दूसरे, 'आग्नेयमण्डल' में विशाखा, पुष्य, पूर्वाभाद्रपद, भरणी, कृत्तिका, मघा एवं पूर्वाफाल्गुनी ये सात नक्षत्र होते हैं और यदि इनमें भूकम्प आए तो अङ्ग देश की प्रजा, राजा एवं जल के लिए हानिहारक होता है। तीसरे, 'माहेन्द्रमण्डल' में अनुराधा, ज्येष्ठा, रोहिणी, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा (एवं अभिजित्) इन सात नक्षत्रों में भूकम्प आए तो गुर्जर देश की प्रजा व राजा के लिए विनाशकारी होता है। इसी प्रकार चतुर्थ, 'वारुणमण्डल' के अन्तर्गत शेष नक्षत्र अर्थात् मूल, उत्तराभाद्रपद, रेवती, आश्लेषा, शतभिषा, पूर्वाषाढ़ और आर्द्रा इन सात नक्षत्रों में भूकम्प आए तो चीन देशवासियों एवं राजा के लिए घातक समझें- भूकम्पोहन्तिवर्णान् प्रहरत, उडुपाश्व्यर्यमाब्ब्यादितेये वायोभूपाम्बुसस्यं मगधमनलजे मण्डलेङ्गानृपाम्भः। द्वीशेज्याजाध्रियाम्याग्निपितृयुग, इहैन्द्रेनृपं गुर्जराश्च मित्रद्वन्द्वाजविश्वत्रिषु परभगणेवारुणे भूपचीनान्॥ (मुहूर्ततत्त्वं 2, 4, 16) वराहमिहिर ने इन फलों को विस्तार से लिखा है। उसका मूल उत्स गर्गसंहिता रहा है। इन्हीं मतों