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अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लासः : 177 नक्षत्र, दुष्ट वार को निर्मित किए भवन का प्रयत्नपूर्वक त्याग करना चाहिए। अथायानयनमाह -
विस्तारेण हतं दैर्घ्य विभजदेष्टामिस्तथा। पूर्वादिदिक्षु चाष्टानां ध्वजादीनामवस्थितिः॥ 63॥
गृह के लिए इष्ट भूमि की लम्बाई और चौड़ाई को गुणा करे और प्राप्त संख्या को आठ से भाजित करें। ऐसा करते हुए जो शेष रहे उसे आय कही जाती है। यह आय पूर्वादि दिशा क्रम से ध्वजादि आठ प्रकार की कही जाती है। ध्वजादि नामानुसारेण दिस्थितिं -
ध्वजो धूमो हरिः श्वा गौः खरेभी वायसोऽष्टमः। पूर्वादिदिक्षु चाष्टानां ध्वजादीनामवस्थितिः॥ 64॥
Cana
माथ
Ramne
PRATY
साय
* आयादि के लिए मेरी सम्पादित सूत्रधार मण्डन कृत आयतत्त्वम्, वास्तुसारमण्डनम्, राजवल्लभवास्तुशास्त्रम्, मय कृत मयमतम्, समराङ्गणसूत्रधार और अपराजितपृच्छा नामक ग्रन्थों का अवलोकन करना चाहिए।