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170 : विवेकविलास भी कहा है। इसलिए इनमें कोई उत्पात हुए हों तो उनका शुभफल कहना चाहिए। दिक्कोणाश्रितेफलं
आग्नेये पीड्यते याम्या वायव्ये पुनरुत्तरा। वारुणे पश्चिमा चात्र पूर्वा माहेन्द्रमण्डले ॥33॥
यदि अग्नि मण्डल में उत्पात हो तो दक्षिण दिशा पीड़ित होती है। वायुमण्डल में हो तो उत्तर दिशा, वरुण मण्डल में हो तो पश्चिम देश पीड़ित हों और महेन्द्र मण्डल में उत्पात हो तो पूर्व दिशा पीड़ित होती है (जैसा कि 29वें श्लोक की पाद टिप्पणि में स्पष्ट किया गया है)। अधुना मयूरचित्रकं च ताजिकसम्मतार्घकाण्डं -
मासात्पूर्णिमा हीना समाना यदि वाधिका। समर्थं च समाधं च महर्ष च कमाद्भवेत्॥34॥
यदि किसी मास के नक्षत्र से पूर्णिमा कम हो तो वस्तुओं के भाव में गिरावट होती है। यदि नक्षत्र समान हो तो भाव पड़े रहते हैं और नक्षत्रावधि अधिक हो तो भावों में बढ़ोत्तरी होती है। रविवारविचारं -
एकमासे रवेाराः स्युः पञ्च न शुभप्रदाः। अमावास्यार्कवारेण महर्घत्वविधायिनी॥35॥
एक मास में यदि पाँच रविवार पड़ते हों तो शुभ नहीं होते" और जिस मास में अमावस्या के दिन रविवार हो तो महंगाई होगी, ऐसा जाने। .. . सङ्क्रान्तिविचारं -
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* उक्त श्लोक मयूरचित्रकं में 16, 19 पर आया है। अल्प पाठान्तर है- मासात्पूर्णिमा हीना समाना
यदि वाधिका। समर्घ च समाधं च महर्घ च भवेत् क्रमात्॥ बाजार भावों के सम्बन्ध में ताजिकनीलकण्ठी, ताजिकभूषण, ताजिकसार, मयूरचित्रकम्, बृहत्संहिता, गार्गिसंहिता, मेघमाला, त्रैलोक्यज्योतिष, घाघभडरी की कहावतें, हायनभास्कर, वर्षकल्पलता, वर्षप्रबोध, संवत्सरविचार आदि में पर्याप्त वर्णन मिलता है। यहाँ पूर्णिमा के नक्षत्र के सम्बन्ध में कथित निर्देश के प्रसङ्ग में यह जानना चाहिए कि पूर्णिमा पर जो नियमित नक्षत्र आता है, वह मास नक्षत्र कहा जाता है जैसे कि चैत्र पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र, वैशाखी पूर्णिमा को विशाख, ज्येष्ठ पूर्णिमा को ज्येष्ठा इत्यादि। **नारद का मत है कि महीनों में यदि पाँच रविवार हो तो रोग, पांच मङ्गलवार हो तो भय, पाँच
शनिवार हो तो दुर्भिक्ष पड़ता है। अन्य वार हो तो शुभकर्ता जानना चाहिए- पञ्चार्कवारेदुर्भिक्षं पञ्चभौम महद्भयम्। पञ्चमन्दे च दुर्भिक्षे शेषा वारा शुभावहाः ॥ (मयूर. 16, 31)