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अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लासः ॥ 8 ॥
अधुना आवासयोग्यदेशलक्षणं
सद्धर्मदुर्गसुस्वामि व्यवसायजलेन्धने ।
स्वजातिलोकरम्ये च देशे प्रायः सदा वसेत् ॥ 1 ॥
(इस उल्लास में सर्वप्रथम आवास योग्य देशादि पर विचार है ) जिस देश में उत्तम धर्म, दुर्ग, सुस्वामी, उद्यम, जल और ईन्धन - ये छह बातें अच्छी हों और अपनी ही जाति के लोगों का निवास हो, उस देश में प्रायः निवास करना चाहिए । गुणिनः सूनृतं शौचं प्रतिष्ठा गुणगौरवम् । अपूर्वज्ञानलाभश्च यत्र तत्र वसेत्सुधीः ॥ 2 ॥
जहाँ गुणी लोग बसते हों और सत्य व्यवहार, पवित्रता, प्रतिष्ठा, गुण का आदर और अपूर्व ज्ञान का लाभ होता हो - वहाँ बुद्धिशाली पुरुष को रहना चाहिए । सम्यग्देशस्य सीमादि स्वरूपं स्वामिनस्तथा ।
ज्ञातिमित्रविपक्षाद्यमवबुद्ध्य वसेन्नरः ॥ 3 ॥
विवेकी पुरुष को जहाँ रहना हो, उस देश की सीमा आदि वहाँ के राजा की रीति-नीति, अपनी जाति और अपने मित्र व विपक्ष आदि का स्वरूप, स्थिति भलीभाँति पहचान कर ही रहना चाहिए।"
निषिद्धदेशादीनां
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बालराज्यं भवेद्यत्र द्वैराज्यं यत्र वा भवेत् । स्त्रीराज्यं मूर्खराज्यं वा यत्र स्यात्तत्र नो वसेत् ॥ 4 ॥
मत्स्यपुराण में आवास योग्य स्थलों का वर्णन इस प्रकार हुआ है— राजा सहायसंयुक्तः प्रभूतयवसेन्धनम् । रम्यमानतसामन्तं मध्यमं देशमावसेत् ॥ वैश्यशूद्रजनप्रायमनाहार्ये तथा परैः । किञ्चिद् ब्राह्मणसंयुक्तं बहुकर्मकरं तथा ॥ अदेवमातृकं रम्यमनुरक्तजनान्वितम्। करैरपीड़ितं चापि बहुपुष्पफलं तथा ॥ अगम्यं परचक्राणां तद्वासगृहमापदि । समदुःखसुखं राज्ञः सततं प्रियमास्थितम् ॥ सरीसृपविहीनं च व्याघ्रतस्करवर्जितम् । एवं विधं यथालाभं राजा विषयमावसेत् ॥ (मत्स्य. 217, 1-5 )