________________
अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लास: : 165 और वन्य जीव नगर में स्वाभाविक रीति से दिखाई देने लगे और सियार और कौआ आदि बहुत कोलाहल करते हों, उस नगर का नाश होता है। उपस्करवैकृत्यं सफलमाह -
छत्रप्राकारसेनादि दाहाद्यैर्नृपभीः पुनः। अस्त्राणां ज्वलनं कोशानिर्गमः स्वयमाहवे॥१॥
छत्र, चहारदीवारी, सेना आदि को यदि अग्नि का उपद्रव हो, तो राजा को भय की आशङ्का जाननी चाहिए और यदि आयुध-असबाब जलते दिखाई दें अथवा अपने अभियान में से बाहर निकल जाएँ तो संग्राम की आशङ्का कहनी चाहिए।
अन्यायकुसमाचारौ पाखण्डाधिकता जने। सर्वमाकस्मिकं जातं वैकृतं देशनाशनम् ॥10॥
यदि मनुष्यों में अन्याय, दुराचार और पाखण्ड का अधिकाधिक प्रसार हो, तो देश का नाश होता है और भी परिवर्तन एकाएक हो तो भी देशभङ्ग होता है। शक्रचापानुसारेण निमित्तफलमाह
प्रावृष्यन्द्रं धनुर्दुष्टं नाह्नि सूर्यस्य सम्मुखम्। रात्रौ दृष्टं सदा शेष काले वर्णव्यवस्थया॥11॥
वर्षाकाल में इन्द्रधनुष यदि दिन को सूर्य के सम्मुख दीखे तो इसमें कोई दोष नहीं परन्तु वही रात्रि को दिखाई दे तो अशुभ जानना चाहिए और शेष समय दीखे तो उसके वर्ण के अनुसार शुभाशुभ फल जानना चाहिए।
सितरक्तपीतकृष्णं सुरेन्द्रस्य धनुर्यदि। भवेद्विप्रादिवर्णानां चतुर्णां नाशनं क्रमात्॥12॥
यदि उक्त इन्द्रधनुष सफेद, लाल, पीला और काला दीखे तो क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय और शूद्र समुदाय का विनाश करने वाला होता है। वृक्षवैकृत्यं सफलमाह -
अकाले पुष्पिता वृक्षाः फलिताश्चान्यभूभुजे। - अल्पेऽल्पं महति प्राज्यं दुनिमित्ते फलं वदेत्॥13॥
यदि असमय ही वृक्षों के फूल-फल आए तो राजा को दुर्निमित्त समझना चाहिए। उपर्युक्त दुष्ट निमित्त अल्प हों तो अल्प और अधिक हों तो उनका अधिक फल कहना चाहिए।
अश्वत्थोदुम्बरवटप्लक्षाः पुनरकालतः। विप्रक्षत्रियविट्शूद्र वर्णानां क्रमतो भिये॥14॥ अश्वत्थ, उदुम्बर, बरगद और प्लक्ष- इन चार वृक्षों में असमय ही फूल