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158 : विवेकविलास पीना और यथानुकूल रात्रि को चाँदनी में बैठना चाहिए।
पूर्वानिलमवश्यायं दधि व्यायाममातपम्।
क्षारं तैलं च यत्नेन त्यजेदत्र जितेन्द्रियः॥22॥ . जितेन्द्रिय पुरुष को इस ऋतु में पूर्व दिशा का पवन-पुरवाई, धूअर, दही, व्यायाम, धूप, क्षारीय वस्तु और तेल का प्रयत्नपूर्वक त्याग करना चाहिए।
सौरभोद्गरसाराणि पुष्पाण्यामलकानि च।
क्षीरमिक्षुविकाराश्च शरद्यङ्गस्य पुष्टये॥23॥ .. इस ऋतु में सुगन्धित पुष्प, आंवले, दूध के साथ-साथ ईख से तैयार होने वाला गुड़, शक्कर आदि वस्तुएँ शरीर को पुष्टि प्रदान करने वाली है। अथ हेमन्तर्तुचर्या -
हेमन्त शीतबाहुल्या द्रजनीदैर्ध्यतस्तथा। वह्निः स्यादधिकस्तस्माद् युक्तं पूर्वाह्णभोजनम्॥24॥
हेमन्त ऋतु में जाड़ा अधिक होने से और रात लम्बी होने से जठराग्नि बहुत प्रदीप्त होती है। अतएव इस ऋतु में दोपहर पूर्व भोजन करना उचित है।
अम्लस्वादूष्णसुग्निग्धमन्न क्षारं च युज्यते।। नैवोचितं पुनः किञ्चिद्वस्तु जाड्यविधायकम्॥25॥
हेमन्त में खट्टा-मीठा, गरम, चिकना और खारा अन्नपान सेवन करना उचित है किन्तु ऐसी वस्तु का प्रयोग नहीं करें जो जठराग्नि को भारी होती हो।
क्लर्यादभ्यङ्गमङ्गस्य तैलेनातिसुगन्धिना। कुङ्कमोद्वर्तनं चित्रं नव्यं वासो वसीत च ॥26॥
इस ऋतु में अति सुगन्धित तेल से शरीर का मसाज, मर्दन करना, केसर का । लेप करना और नवीन वस्त्र पहनना चाहिए।
सेवनीयं च निर्वातं कर्पूरागरुधूपितम्।
मन्दिरं भासुराङ्गार शकटीभासुरं नरैः॥27॥ - इसी प्रकार हेमन्त ऋतु में मनुष्य को बिना (तेजी से आती-जाती) वायु के, कर्पूर और कृष्णागर चन्दन की धूप से सुगन्धित और तेज आग की सिगड़ी से तपे हुए घर में रहना चाहिए।
युवती साङ्गरागा च पीनोन्नतपयोधरा। शीतं हरति शय्या च मृदूष्णस्पर्शशालिनी॥28॥
इस अवधि में शरीर पर सुगन्ध, अङ्गराग का विलेपन और पुष्ट व ऊँचे स्तन से चित्त को आकर्षित करने वाली तरुण स्त्री और कोमल एवं उष्ण स्पर्श वाली