________________
अथ दीपशयनवरवधूलक्षणजातकादीनां वर्णनं नाम पञ्चमोल्लासः : 151 बायीं करवट से सोना चाहिए। निशाकाले निद्राविचारं
अनादिप्रभवा जीवे तमोहेतुस्तमोमयी। प्राचुर्यात्तमसः प्रायो निद्रा प्रादूर्भवेनिशि ॥ 247॥
समस्त प्राणियों को अनादि काल से लगी हुई निद्रा स्वयं तमोगुणी होने से । अन्धकारमय रात्रि के समय में ही प्रायः प्रकट होती है अर्थात् रात्रि निद्रा के लिए है।
श्रूष्मावृतानि स्रोतांसि श्रमादुपरतानि च। यदाक्षाणि स्वकर्मभ्यस्तदा निद्रा शरीरिणाम्॥ 248॥
जिस समय संज्ञावाहन स्रोत (नाड़ियाँ) कफ से भरती हैं और इन्द्रियाँ श्रम से अपना काम बन्द कर देती हैं तब तब प्राणियों को निद्रा होती है। . निवृत्तानि यदाक्षाणि विषयेभ्यो मनः पुनः।
न निवर्तेत वीक्षन्ते तदा स्वप्रान् शरीरिणः ॥ 249॥
जब इन्द्रियाँ थक जाने के कारण अपना काम बन्द करती हैं परन्तु मन अपना काम निरन्तर करता रहता है, तब प्राणियों को स्वप्न आते हैं। अतिनिद्रा अनुचितं
अत्यासक्त्यानवसरे निद्रा नैव प्रशस्यते। एषा सौख्यायुषी काल रात्रिवत्प्रणिहन्ति च ॥ 250॥
अति आसक्ति से और असमय की निद्रा अच्छी नहीं होती है क्योंकि वह निद्रा कालरात्रि की तरह सुख और आयुष्य का नाश करती है।
संर्वधयति सैवेह युक्त्या निद्रा सुखायुषी। ___ अनवच्छिन्नसन्ताना सुधाकुल्येव वीरुधः॥ 251॥
जिस प्रकार अविच्छिन्न करके दी गई अमृत समान लता सुखावसर पाकर बहुत काल तक जीवित रहती है, वैसे ही निद्रा ऐसी युक्ति से ली जाए कि उससे सुख . व आयु की अभिवृद्धि हो।
रजन्यां जागरो रूक्षः स्निग्धः स्वापश्च वासरे। . रूक्षस्निग्धमहोरात्रमासीनप्रचलयितम्॥ 252॥
रात्रि को जागृत रहना रूक्ष है और दिन को सोना स्निग्ध माना गया है। दिन को बैठ रहना और रात को उद्यम करना- यह रूक्ष-स्निग्ध (जैसा कि आजकल की दिनचर्या में होता जा रहा है) जानना चाहिए। दिवाकाले निद्रायोग्यकारणं