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56 : विवेकविलास भूपरीक्षणार्थ प्रदीपविधि -
श्वभ्रस्थिताममृत्पात्रे कृते दीपचतुष्टये। यदिग्दीपश्चिरं दीप्रं सा तद्वर्णस्य भूः शुभा॥ 172॥
(गृहार्थ भूमि परीक्षा के लिए वहाँ खड्डा खोदें और उसमें) खदान की मिट्टी का दीपपात्र तैयार कर उसमें चार बत्तियाँ जलाएं और देखें कि (उत्तरादि के क्रम से विप्रादि वर्णों की परिकल्पना कर) जिस दिशा का दीपक दीर्घावधि पर्यन्त प्रज्वलित रहे, वह भूमि उक्त वर्ण के लिए प्रशस्त होती है। तथा चान्यनिमित्तमाह -
सूत्रच्छेदे च मृत्युः स्यात्कीले चावाङ्मुखे रुजा। स्मृतिनश्यति कुम्भस्य पुनः पतनभङ्गयोः॥ 173॥
यदि कार्यारम्भ अवसर पर, भूमि का नाप करते समय सूत्र भङ्ग हो जाए तो गृहस्वामी का मरण जानना चाहिए। वहाँ पर कील ठोकते हुए बल खा जाए तो बीमारी होती है और यदि जलपूर्ण कलश लाते समय गिर जाए अथवा टूट जाए तो
* यह गर्गाचार्य का मत है। आमे वा मृन्मयें पात्रे दीपवर्तिचतुष्टयम्। यस्यां दिशि प्रज्वलति चिरं तस्यैव
सा शुभा॥ (सविवृत्तिबृहत्संहिता 52, 95 पर उद्धृत) वराहमिहिर ने भी इसे उद्धृत किया है और कहा है कि चार बत्तियों वाला दीपक तैयार कर उसे मिट्टी के कच्चे बर्तन में रखें। उक्त बत्तियों के उत्तरादि क्रम से ब्राह्मणादि वर्गों की कल्पना करें। इस बर्तन को एक गड्ढे में डालें और देखें कि जिस दिशा की बत्ती देर तक जलती रहे, उस दिशा के वर्ण के लिए वह भूमि शुभ मानी जाती है- आमे वा मृत्पात्रे श्वभ्रस्थे दीपवर्तिरभ्यधिकम् । ज्वलति दिशि यस्य शस्ता सा भूमिस्तस्य वर्णस्य॥ (बृहत्संहिता
52, 94)
वराहमिहिर अन्य विधियाँ भी बताई हैं। एक विधि के अनुसार निश्चित क्षेत्र के बीच एक हाथ चौड़ा, लम्बा और गहरा गड्ढा खोदकर निकाली गई मिट्टी से पुन: उसे भरें। इस दौरान देखें कि गढ्ढा पूरा भर जाए और यदि मिट्ट बच जाए तो उस भूमि को सर्वथा उत्तम माने। बराबर होने पर सम और मिट्टी के घट जाने पर वह स्थान अशुभकारी होगा, ऐसा जानें। एक अन्य विधि के अनुसार गड्ढे में पानी भरें और समान गति से सौ कदम जाएँ तथा लौटकर देखें कि यदि थोड़ा बहुत भी पानी बचता हो, तो वह भूमि धन्य है अथवा भूमि से निकली मिट्टी यदि चौंसठ आढ़क हो तो भी शुभ जानना चाहिए- गृहमध्ये हस्तमितं खात्वा परिपूरितं पुनः श्वभ्रम्। यद्यूनमनिष्टं तत् समे समं धन्यमधिकं यत्। श्वभ्रमथवाम्बुपूर्णं पदशतमित्वागतस्य यदि नोनम्। तद्धन्यं यच्च भवेत् पलान्यपामाढकं चतुष्षष्टिः ।। (वही 52, 92-93) इसी प्रकार सायंकाल ब्राह्मणादि वर्ण-तुल्य पुष्पों यथा- श्वेत, लाल, पीत व काले फूलों को लेकर गड्ढे में डाल दें। दूसरे दिन सुबह उन पुष्पों को निकालकर देखें कि जिस वर्ण का पुष्प मुरझाया नहीं हो, उस वर्ण के लिए वह भूमि उत्तम होती है अथवा अपना मन जहाँ पर भी रम जाए, वहाँ निवास कर लेना चाहिए- श्वभ्रोषितं न कुसुमं यस्य प्रम्लायतेऽनुवर्णसमम्। तत् तस्य भवति शुभदं यस्य च यस्मिन् मनो रमते ॥ (वही 52, 95) .